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________________ आदान : पन्द्रहवाँ अध्ययन अध्ययन का संक्षिप्त परिचय चौदहवें अध्ययन की व्याख्या की जा चुकी है । अब पन्द्रहवाँ अध्ययन प्रारम्भ किया जाता है । चौदहवें अध्ययन में कहा गया है कि साधु को बाह्य आभ्यन्तर दोनों प्रकार के ग्रन्थों से मुक्त होना चाहिए । ग्रन्थमुक्त होने से साधु आयत ( विशाल ) चारित्र से सम्पन्न हो जाता है । अत: इस अध्ययन में यह बताया गया है कि साधक किस प्रकार विशाल चारित्र सम्पन्न हो सकता है ? इस अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है कि साधु को आयत चारित्र होना चाहिए । वैसे इस अध्ययन में विवेक की दुर्लभता, संयम के सुपरिणाम, भगवान् महावीर या वीतराग पुरुष का स्वभाव, सयमी पुरुष की जीवन पद्धति आदि का निरूपण है । इस अध्ययन में कुल २५ गाथाएँ हैं । इस अध्ययन के तीन नाम हैं ( १ ) आदान अथवा आदानीय ( २ ) संकलिका अथवा श्रृंखला, (३) जमतीत अथवा यमकीय | आदान या आदानीय नाम इसलिए है कि मोक्षार्थी पुरुष समस्त कर्मों का क्षय करने के लिए जिस विशिष्ट ज्ञानादि का आदान --- ग्रहण करते हैं, उसका इस अध्ययन में निरूपण है । इस अध्ययन का आदानीय नाम रखने के पीछे नियुक्तिकार का मन्तव्य यह है कि इस अध्ययन में जो पद प्रथम गाथा के अन्त में है, वही पद अगली गाथा के प्रारम्भ में ग्रहण (आदान) किया गया है । अथवा प्रथम गाथा के अर्धभाग के अन्त हो, वही पद, शब्द, अर्थ और उभय के द्वारा यदि द्वितीय गाथा के आदि में हो या द्वितीय गाथा के अर्धभाग की आदि में हो तो वह पद आदि और अन्त के सदृश होने से आदानीय कहलाता है । इस अध्ययन में ऐसा ही हुआ है, इसलिए इसका नाम आदानीय रखा गया है । वृत्तिकार कहते हैं कि कुछ लोग इस अध्ययन को संकलिका अथवा श्रृंखला नाम से पुकारते हैं क्योंकि एक तो इस अध्ययन में प्रथम पद्य का अन्तिम शब्द एवं द्वितीय पद्य का आदि शब्द श्रृंखला की भाँति जुड़े हुए हैं, अर्थात् उन दोनों की ६५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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