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________________ सूयगडो १ • मामक - ममत्व करने वाला । ० कृतक्रिय — स्त्रियों को वश में करने के लिए साज-श्रृंगार करने वाला । ये सारे अर्थ स्त्री से संबंधित हैं । निशीथ भाष्य, चूर्णि आदि में इनके अर्थ भिन्न हैं । १११ काहिए इसका अर्थ है - कथा से आजीविका करने वाला । आख्यानक, गीत, शृंगारकाव्य, दंतकथा तथा धर्म, अर्थ और काममिश्रित संकीर्ण कथा करता है वह काथिक कहलाता है । निशीथ चूर्णि के अनुसार जो देशकथा, भक्तकथा आदि कथा करता है वह काथिक है । # जो धर्मकथा भी आहार, वस्त्र, पात्र आदि की प्राप्ति के लिए करता है, जो यश को चाहने वाला है, पूजा और वन्दना का व है, जो सूत्रपौषी और अर्थ का पूरा पालन नहीं करता, जो रात-दिन धर्मकथा पढ़ने और कहने में लगा रहता है, जिसका कर्म केवश धर्मकथा करना ही है, वह काथिक कहलाता है। आज के शब्दों में उसे कथावाचक या कथाभट्ट कहा जा सकता है। उक्त व्याख्याओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि संयमी मुनि को धर्मकथा के अतिरिक्त सभी प्रकार की कथाओं का वर्जन करना चाहिए । धर्मकथा स्वाध्याय का पांचवां प्रकार है। उससे मनुष्य संबोधि को प्राप्त होता है, तीर्थ की अव्युच्छित्ति होती है, शासन की प्रभावना होती है। उसके फलस्वरूप कर्मों की निर्जरा होती है, इसलिए वह की जा सकती है। किन्तु वह भी हर समय नहीं, उस सीमा में ही करनी चाहिए जिससे अवश्यकरणीय कार्य-अध्ययन, सेवा आदि में विघ्न उपस्थित न हो । पासणिए यह देशी शब्द है । इसका अर्थ है - साक्षी । देशी नाममाला में साक्षी के अर्थ में 'पासणिभ' और 'पासाणिब, ये दो शब्द प्राप्त हैं।" १. आधारांवृत्ति पत्र १११ । २. वृत्ति पत्र, ७० कथया चरति कायिकः । ३. निशी १३ / ५६ भूमि पृ० ३१८ समझायादिकरण ४. निशीय माध्य, गाथा ४३४३-५५ पूर्ण पृष्ठ ११०,३२२ अध्ययन २ टिप्पण ६३ चूर्णिकार और वृत्तिकार ने 'पासणिए' शब्द की व्याख्या प्राश्निक शब्द के आधार पर की है। चूर्णिकार ने प्रालिक का अर्थ- गृहस्थ के व्यवसाय और व्यवहार के संबंध में निर्णण देने वाला - किया है। इसी सूत्र की ९ / १६ की चूर्णि में इसका अर्थ इस प्रकार है- प्रश्न का निर्णय देने वाला, लौकिक शास्त्रों के भावार्थ का प्रतिपादन करने वाला ।" वृत्तिकार ने राजा आदि के इतिहास - ख्यापन तथा दर्पण, अंगुष्ठप्रश्न आदि विद्या के द्वारा आजीविका करने वाले को प्राश्निक Jain Education International जोगे मोतुं जो देसकहादि कहातो कति सो काहितो। आहारादीपट्टा, जसहे अहव पणनिमित्तं । तक्कम्मो जो धम्मं कति सो काहिलो होति ॥ कामं खलु धम्मकहा, सज्झायस्सेव पंचमं अंगं । अव्वोच्छित्त ततो, तित्थस्स पभावणा चेव ॥ तह वियण सवाल, धम्मका जीइ सब्वपरिहाणी । नाउं व खेत्तकालं, पुरिसं च पवेदते धम्मं ॥ वत्थपातादिनिमित्तं जसरथी वा वंदना विपूयाणिमितं वा सुत्तस्यपरिसि तदेवास्य केवलं कर्म तवकम् एवं विधो काहितो भवति । ..धम्मक पि जो करेति आहाराविणिमितं वावारो अहो य रातो य धम्मका दिपठणकणव सव्वकालं धम्मो ण चोदग आह— "णणु सञ्झाओ पंचविधो वायणादिगो । तस्स पंचमो भेदो धम्मकहा। तेण भव्वसत्ता पडिबुज्भंति, तित्थे य अग्वोच्छित्ती पभावणाय भवति, अतो ताओ णिज्जरा चैव भवति, कहं काहियत्तं पडिसिज्झति ? कव्वा जतो पडलेहणादि संजमजोगाण सुत्तत्थपोरिसीण य आयरियगिलाणमादी किच्चाण य परिहाणी भवति, अतो न काहियत्तं कायवं । ५. देशीनाममाला ६।४१ : पासणिओ पासाणिओ अ सक्खिम्मि || ६. णि, पृ० ६७ ७. बड़ी, पृ० १७८ पासमिओ नाम गिहीणं व्यवहारेष प्रस्तुतेषु पणियगादि वा प्राश्निको न भवति । पासणियो नाम यः प्रश्नं इन्वति तद्यथा-व्यवहारेष (शास्त्रेषु) वा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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