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________________ समवाप्रो समवाय १: सू० ३-२९ ३. तत्थ णं जेसे चउत्थे अंगे समवाए- तत्र यत्तच्चतुर्थमङ्ग समवाय इत्याख्या- ३. इनमें चौथा अंग समवाय कहा गया है, त्ति आहिते, तस्स णं अयमझें, तं तम्, तस्य अयमर्थः, तद्यथा--- उसका यह अर्थ है, जैसे--- जहा४. एगे आया। एक आत्मा। ४. आत्मा एक है। ५. एगे अणाया। एकोऽनात्मा। ५. अनात्मा एक है। ६. एगे दंडे । एको दण्डः। ६. दण्ड (दुष्प्रयोग अथवा हिंसा) एक है। ७. एगे अदंडे। एकोऽदण्डः। ७. अदण्ड एक है। ८. एगा किरिआ। एका क्रिया। ८. क्रिया (आस्तिकता) एक है। ९. एगा अकिरिआ। एकाऽक्रिया । ६. अक्रिया (नास्तिकता) एक है। १०. एगे लोए। एको लोकः । १०. लोक एक है। ११. एगे अलोए। एकोऽलोकः । ११. अलोक एक है। १२. एगे धम्मे। एको धर्मः । १२. धर्मास्तिकाय एक है। १३. एगे अधम्मे। एकोऽधर्मः। १३. अधर्मास्तिकाय एक है। १४. एगे पुण्णे। एक पुण्यम् । १४. पुण्य एक है। १५. एगे पावे। एक पापम् । १५. पाप एक है। १६. एगे बंधे। एको बन्धः । १६. बन्ध एक है। १७. एगे मोक्खे। एको मोक्षः । १७. मोक्ष एक है। १८. एगे आसवे। एक आश्रवः। १८. आस्रव एक है। १६. एगे संवरे। एक: संवरः । १६. संवर एक है। २०. एगा वेयणा। एका वेदना। २०. वेदना एक है। २१. एगा णिज्जरा एका निर्जरा। २१. निर्जरा एक है। २२. जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं जम्बूद्वीपो द्वीप एक योजनशतसहस्रं २२. जम्बूद्वीप द्वीप का आयाम-विष्कंभ आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। आयामविष्कम्भेण प्रज्ञप्तः। (लम्बाई-चौड़ाई) एक लाख योजन है। २३. अप्पडदाणे नरए एग जोयणसय- अप्रतिष्ठानो नरक एक योजनशतसहस्रं २३. अप्रतिष्ठान नरक का आयाम-विष्कंभ सहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। आयामविष्कम्भेण प्रज्ञप्तः । एक लाख योजन है। २४. पालए जाणविमाणे एगंजोयणसय- पालकं यानविमानं एक योजनशतसहस्रं २४. पालक यान-विमान का आयाम-विष्कभ सहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। आयामविष्कम्भेण प्रज्ञप्तम । एक लाख योजन है। २५. सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे एगं सर्वार्थ सिद्धं महाविमानं एक योजनशत- २५. सर्वार्थसिद्ध महा-विमान का आयाम जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं सहस्रं आयामविष्कम्भेण प्रज्ञप्तम् । विष्कंभ एक लाख योजन है। पण्णत्ते। २६. अद्दानक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते। आनिक्षत्रं एकतारं प्रज्ञप्तम्। २६. आर्द्रा नक्षत्र का तारा एक है। २७. चित्तानक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते।। चित्रानक्षत्रं एकतारं प्रज्ञप्तम् । २७. चित्रा नक्षत्र का तारा एक है। २८. सातिनक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते। स्वातिनक्षत्रं एकतारं प्रज्ञप्तम् । २८. स्वाति नक्षत्र का तारा एक है । २६. इमीसे णं रयणप्पभाए पूढवीए अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां अस्ति एकेषां २६. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगं नैरयिकाणां एक पल्योपमं स्थितिः की स्थिति एक पल्योपम की है। पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। प्रज्ञप्ता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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