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________________ प्रकाशकीय मुझे यह लिखते हुए अत्यन्त हर्ष हो रहा है कि 'जैन विश्व भारती' द्वारा आगम प्रकाशन के क्षेत्र में जो कार्य सम्पन्न हुआ है, वह मूर्धन्य विद्वानों द्वारा स्तुत्य और बहुमूल्य बताया गया है। हमने ग्यारह अंगों का पाठान्तर तथा 'जाव' की पूर्ति से संयुक्त सु-संपादित मूल पाठ मात्र 'अंगसुत्ताणि' भाग १, २, ३ में प्रकाशित किया है। उसके साथ-साथ आगम-ग्रन्थों का मूलपाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद एवं प्राचीनतम व्याख्या सामग्री के आधार पर सूक्ष्म ऊहापोह के साथ लिखित विस्तृत मौलिक टिप्पणों से मंडित संस्करण प्रकाशित करने की योजना भी चलती रही है। इस शृंखला में तीन आगम-ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं : (१) ठाणं (२) दसवेआलियं (३) उत्तरज्झयणाणि प्रस्तुत आगम 'समवाओ' उसी शृखला का चौथा ग्रन्थ है। बहुश्रुत वाचना-प्रमुख आचार्यश्री तुलसी एवं अप्रतिम विद्वान् संपादक-विवेचक युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ ने जो श्रम किया है, वह ग्रन्थ के अवलोकन से स्वयं स्पष्ट होगा। संपादन-विवेचन सहयोगी मुनि दुलहराजजी ने इसे सुसज्जित करने में अनवरत श्रम किया है। विदुषी साध्वीश्री कनकधीजी ने संस्कृत छाया के प्रस्तुतीकरण में हाथ बंटाया है। ऐसे सू-संपादित आगम-ग्रन्थ को प्रकाशित करने का सौभाग्य 'जैन विश्व भारती' को प्राप्त हुआ है, इसके लिए वह कृतज्ञ प्रस्तुत आगम 'समवाओ' का मुद्रण श्री रामपुरिया चेरिटेबल ट्रस्ट (कलकता) द्वारा घोषित अनुदान राशि में से हुआ है। मैं उस ट्रस्ट के सभी ट्रस्टियों के प्रति संस्था की ओर से हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता हूं। जैन विश्व सारती के अध्यक्ष श्री बिहारीलालजी सरावगी की निरन्तर और सघन प्रेरणा के कारण ही, कुछ वर्षों के व्यवधान के पश्चात, आगम प्रकाशन का कार्य पुनः तत्परता से प्रारम्भ हुआ है। मुझे आशा है कि इस प्रकाशन कार्य की निरन्तरता बनी रहेगी और हम निकट भविष्य में और अनेक आगम-ग्रन्थ प्रस्तुत करने में सक्षम होंगे। आशा है पूर्व प्रकाशनों की तरह यह प्रकाशन भी विद्वानों की दृष्टि में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। लोडनू श्रीचन्द रामपुरिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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