SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७ की चार वाचनाएं हो चुकी हैं । देवद्धि गणि के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। अनेक वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। आचार्य श्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक बाचना के लिए प्रयत्न भी किया था। परंतु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्तत हम उसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसंधानपूर्ण, गवेषणापूर्ण, तटस्थ दृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगमवाचना का कार्य आरंभ हुआ। हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्य श्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन कर्म के अनेक अंग हैं .. पाठ का अनुसंधान, भाषान्तर, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में हमें आचार्य श्री का सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा गुरुतर कार्य में प्रवृत होने का शक्ति-बीज है । मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर भार मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं । प्रस्तुत पुस्तक के अन्तर्गत नौ उपांगो के पाठ-शोधन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी, का पर्याप्त योग रहा है। पण्णवणा में मुनि बालचंदजी, निरयावलियाओ में मुनि मधुकरजी का भी योग रहा है। प्रतिलिपि शोधन में स्व. मन्नालालाजी बोरड़ भी इसमें सहयोगी रहे हैं। पष्णवणा की शब्दसूची मुनि श्रीचन्द जी, जंबुद्दीवपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, चंदपण्णत्ती की मुनि सुदर्शन जी तथा निरयावलियाओ की मुनि हीरालालजी ने तैयार की है। इस ग्रन्थ के प्रथम परिशिष्ट व इसका ग्रन्थ परिमाण मुनि हीरालाल जी ने तैयार किया है। पण्णवणा व जंबुद्दीवपण्णत्ती की शब्दसूची में क्रमश: साध्वी जिनप्रभाजी व साध्वी चन्दनबालाजी का भी योग रहा है। प्रूफ निरीक्षण में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी. मुनि दुलहराजजी तथा समणी कुसुमप्रज्ञा संलग्न रही है। कहीं मुनि विमलकुमारजी, मुनि सम्पतमलजी भी सहयोगी रहे हैं । पाठ के पुननिरीक्षण के समय मुनि हीरालालजी विशेषतः संलग्न रहे हैं । __ आगम बत्तीसी के पाठ-सम्पादन कार्य में नामोल्लेख के अतिरिक्त जिनका यत्किञ्चित् योग रहा है, उन सबके प्रति हम कृतज्ञता वा भाव व्यक्त करते हैं। सम्पादन कार्य में संघीयभंडार के अतिरिक्त एल० डी० इन्स्टीट्यूट अहमदाबाद, श्रीचंद गणेशदास गधैया पुस्तक भंडार सरदाशहर, तेरापंथी सभा सरदारशहर, पूनमचंद बुद्ध मल दूधोडिया छापर, घेवर पुस्तकालय सुजानगढ़, जैन विश्व भारती ग्रंथालय लाडनूं , जेसलमेर भंडार, इन सब संस्थानों से प्राप्त हस्तलिखित आदर्शों का हमने प्रयोग किया। मुनिश्री पुण्यविजयजी ने 'नन्दी' की संशोषित प्रति भी हमें उपलब्ध कराई थी। इन सबका योग हमारे कार्य में मूल्यवान बना। आचार्य श्री के वाचना-प्रमुखत्व में आगम-वाचना का जो कार्य प्रारंभ हुआ था उसका एक पर्व संशोधित पाठयुक्त आगम बत्तीसी के साथ सम्पन्न हो रहा है । बत्तीस आगमों का संशोधित पाठ पहली बार विद्वान् पाठकों के लिए सुलभ हो रहा है । यह हमारे लिए उल्लास का विषय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003579
Book TitleAgam 23 Upang 12 Vrashnidasha Sutra Vanhidasao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages394
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vrushnidasha
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy