SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अच्चुयग-अजीवपज्जव ८१५ से २६६६१३८,५६,६६,८५,८६,१८.७।१६; अजसोकित्तिणाम (अयश:कीर्तिनामन ) प २३१३८, १५८८,२०।६१,२११६१,३०,६१,६२२८८६; १२८ ३०।२६:३३।१६,२४,३४११६,१८ ज १९४; अजहण्ण (अजघन्य) प २३.१६१ से १६३ ज २११५ ५१४६,५४,५६,५८,५६ उ0000४१ अजहणशमणुक्कोस (अजघन्यानुत्कर्ष)प ४।२६७, अच्चुयग (अच्युतक) ज ५१४६ २६६; १।४२,४६,६४,७६,११२,११६,२४४; अच्चेत्ता (अर्चयित्वा) ज २।१२० ७।३०,१८:१०२,२३।६३;२८।६७ अच्छ (रुक्ष) प ११६६।११।२१ ज २॥३६,१३६ अजहण्णमणुक्कोसगुण (अजघन्यानुत्कर्पगुण) अच्छ (अच्छ) प १९३।४:२१३०,३१,४१,८६,५० प ५।३८,६०,७५,१०,१०८,१२१,१६८,२०१, ५२,५८,५६,९३,६४ ज से १०,०३,३१, २०४,२०८,२१२,२१५,२१६,२२२,२२५,२४३ ३५,५१:३।१२,८८,१०६,१६४,४११,३,७.१२, अजहष्णमणुक्कोसद्वितिय (अजघन्यानुत्कपस्थितिक) १५,२४,२५,२८ से ३१, ३ से ४१,४५,५७, प १।३५,५७,७२,८७,१०५,१७५,१७८,१८२, ६२,६४,६६ से १८,७४ से ३६,८६,८८,६१ १८५,१८८,२४० से १३,१०३,११०,११४,५१८,१४३,१५६ अजहण्णमणुक्कोसपदेसिय (अजघन्यानुत्कपंप्रदेशिक) १७८,२०३,२०६,१३,१८,२४२,२४५, प ५१-३१,२३२ २५१,२५२,२६०१:५१५८,७५५ म् ॥3 अजहण्णमणुक कोसमति (अजघन्यानुत्क मति) १६२३ प ५१६४ अिच्छ (आस् ) अच्छेज्ज प २०६४।१६ अजहण्णमणुक्कोसोगाणग (अजघन्यानुत्कर्ष वगाहअच्छत्तय (अछत्रक) उ ५।४३ नक) प ५१७१,१७२,२३६,२३७ अच्छरगण (अप्सरोगण) प १३०,३१,४१ ज १।३१ " अजहण्णमणुक्कोसोगाहणय (अजघन्यानुत्कर्षावगा हनक) प ५१५०,५४,६६,८४,१०२,१५५,१५८ अच्छरसातंडुल (अप्सन सतण्डुल') ज ३११२,८८; ५।५८ १६०,१६४,१६७,१७२,२३७ अच्छरा (दे०) प ३६१८१ अजहष्णुक्कोस (अजघन्योत्कर्ष) प ४६४,६८ अच्छरा (अप्सरम्) प ३४।१६ से २४ उ ५१५ अजहण्णुक्कोसोगाहणग (अजघन्योत्कर्षावगाह्नक) अच्छि (अक्षि) प ११४१४७,१२२५ च १३१ ज प ५१३१,३२ अजहण्णकोसोगाहणय (अजघन्योत्कपीवगाहनक) २१४३,३११७८,७१७८ उ० ३.११४ अच्छिण्ण (अच्छिन्न) प १५१४० से ४२ प ५।३२,१६१ अच्छिद्द (अछिद्र) ज २११५ अजाइय (अयाचित) उ० ३।३८ अच्छिरोड (अक्षिरोट) प ११५१ अजावणिज्ज (अयापनीय) ज२११३१ अच्छिवेह (अक्षिवेध) प ११५१ अजिण (अजिन) ज २७८ अच्छी (ऋक्षी) प १११२३ अजिम्ह (अजिह्म) ज २०१५ अच्छेरग (आश्चर्य) ज २११५ अजिय (अजित ) ज० ३।१८५,२०६ अजीरग (अजीरक) ज २४३ अजर (अजर) प २१६४।२१ अजीव (अजीव) प १३१०१।२,१५१५७ ज २१७१ १ अच्छो 'रसो येषां ते अच्छरमाः प्रत्यासन्नवस्तु २०११उ ३।१४४५॥३४ प्रतिबिम्बाधारभूताइवातिनिर्मला इतिभावः अजीवपज्जव (अजीवपर्यव) T५१,१२३से १२५, टीका पत्र १६२ २४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003579
Book TitleAgam 23 Upang 12 Vrashnidasha Sutra Vanhidasao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages394
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vrushnidasha
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy