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________________ विज्जुप्पट-विद्धं स १०४५ ४।२ विजुष्पह (मिथुन भ) ज ४१२१५ इविण्णव (वि+ज्ञपय) दिण्णवेइ उ १११०१ रिनुपहखार(युत्प्रभवक्ष:कार) ज ४।२०५ विण्णवणा (विज्ञाना) उ ३.१०६ विरह ( मुख) प ११८६ विण्गविज्जमाण (विज्ञप्यमान) उ १११०२ विहान) ज २१३१:४।२११ विष्णवित्तए (विज्ञपयितुम् ) उ १६६ विण्हु (विष्णु) ज ७१३०,१८६१३ विज्य (बु) जुयायंनि ज ५७ विण्हुदेवया (ष्णुदेवता) सू १०७६ विज्जुयाक्त्तिा (युत्यित्वा) ज ५७ वितत (विनत) ज ५१३२,५७ विज्झडिय (दे०, मिश्रित) ज २११३३ विलतपक्खि (विततपक्षिन् ) प १९७७,८१ विज्झिडियमच्छ ( झिद्रिय'मत्स्य) प ११५६ वितत्त (विराप्त) सू २०१८,२०1८1८ विछि (विष्टि) १२३ से १२५ क्तित्थ (त्रिस्त) सू २०१८,२०१८१८ विडंविय ( नि ) ७११३८ । पितथि (वितरित) ज २१६ विडिम (२७ लिटप) गरा४६ ज ४।१४६ वितिमिर (विति ) पश६३,३६१६३,६४ विडिनर (६०, विटपान्तर) ज २०१६ विति निरतराग (वितिमिरतरक) प १७।१०८,११० दिड्डा (जीडा) ॥५८,८३ मित्त (वित्त) ३६१०३,१५८ विणड (निप्ट ज २११०३.१०४ वित्त (वेत्र) ज ३१०६ विणमि (निमि) ज३।१३७,१३८,१३६ वित्ति (वृत्ति) ज १११३.३०,३३,३६, २।१३४; विणय (विनय) प ११०११० ज १८,६०, १०,१३३,३१८,१३,१६ ५३,६२७०,७७,८४, वित्थड (विस्तृत) ज ३११७,७१३०,३१,३३ १००,१४२.१४७,१६५,१८१,१८६,१६२, मु ४५३,४,६,७,१९२२११५ २०५,२०६ २१३:५११५,२३,५८,६९,७३ वित्थय (प्तृित) ज ३१३२,१०६ सू२०१६।४,६ उ १।१६,४५,५५,५८.६७, वित्थर (विस्तर) ज२।१३४ ८०,६३,१०८.११६,१२०,३११२० वित्याररुइ ( ताररुचि) प १।१०१११,९ विणास (f नाय) प १७४ वित्थिण्ण (तीण) प २१५०,५६,५८ ज १२४, विपासण ( दिसा) ३८८,१०९ २८ उ ३३९१,५१४ विभिगम: विच्छ ज ३.१०६ विदिसा (दिशा) जे ४११०६,१५५,२०४,२१०, विणिम्यंत ( मज्जत् ११३७,३।१२, २१२.२३५.२३७,५३१२ ८८,५८ विविसि (विदिश) प ३६।७०,७२ ज ५११२ इपिणी (वि. णी) विण: उ०४६ विणेति विदितीवाय (दिक्यात) प१२६ उ ११३४ मिमि उ११७४ विदेह (दिह) प ११६३।३,६४१ उ १११२६, विणीला (विनीलः) ज ३१८२ विणीय (त्रित) उ ५१४०,४१ विदेहबू (विदेह जम्बू) ज ४११५७॥ ? विणीयाको २१६,६५; ३.१२.७,८, दिदुम (विद्र) ज ३।३५ १४,७,८८,१०६,१७२,१७३,१८०,१८३ से विद्ध (पिद्ध) ज ३।३५ १८५,१६१६९,२०३,२०४,२०८ २०६, विद्वंस if ध्वंस) प १११७२:२८१४०,४३,६६ विण्णय ( विश१२७,१२८,21४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003573
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Chandapannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages390
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_chandrapragnapti
File Size12 MB
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