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________________ निक्खंत-निन्भच्छणा ६५७ निक्खंत (निष्क्रान्त) उ ३.१७०४।२८,५।२७ निच्छय (निश्चय) उ ३३११ निक्खम (निर्-। क्रम्) निक्खमइ उ १११६ निच्छुहाव (नि ! क्षेपय ) निच्छहावेइ उ ११११७ निक्खमण (निष्क्रमण) ज ४११७७ उ ३३१०६; निच्छुहाश्यि (निक्षेपित) उ ११११६ निच्छूद्ध (निक्षिप्त) उ१।११८ निक्खममाण (निष्कामत् ) सू १।८।२,१११२ १४, निज्जर (दिर : ज़) निज्जरंति प १४।१८ १६,१८,१६,२१ २४,२७, २।३:६११ निजरिसु प १४.१८ जिनिस्संनि निक्खमित्ता (निष्क्रम्य) उ १२११६ प १४११८ निज्जरेंसु प १४६१८ निक्खित्त (निक्षिप्त) उ ३।४८.५०,५५ निज्जरा (निर्जग) प १४।१८१ निक्खेव (निक्षेप) उ १११४८ निज्जाणसंठिय (निर्याणसं स्थित) सू ४१३ निगम (निगम) प ११७४ ज ३६,७७,२२२ निज्जाणभूमि (निर्याणभूमि) ज ५१४८ निगर (निकर) ज ३।१२,८८; १५८ निज्जाणमग (निर्माणमार्ग) ज ५१४४ उ ३१६१ निगिण्ह (नि-+ग्रह ) निनिम्हइ ज ३१२३,३७, निज्जुत्त (नियुक्त) प २।३० निज्झर (निर्भर) ज २।४,१३ १६ से १६,२८ निगिहित्ता (निगृह य) ज ३१२३ निट्टियट्ठ (निष्टिताथं) ५३६९४ निगोद (निगोद) प ३६१ से ६३.७० से ७४,५२, निण्ण (निम्न) ज ३१७७,१०६ ८४ से ८७,६४,६५,१८३;१८।४६ नितंब (नितम्ब) ज ४।१६४ निगोय (निगोद) प ११४८।५६ से ५८,३१८७ नित्तेय (निस्तेजम्) उ १६३५ निग्गंथ (निन्थ) ज २१७२ उ ३१३८,४०,४२, निदाया (दे०) ३५१८,१६ १०३,१३६,४।१४।५।२० निदाह (निदाघ) ज ७१११४१२ निम्गंथी (निर्ग्रन्थी) ज ३।१०२,११५,११७,११८; निद्दा (निद्रा) प २३६१ ४१२२ उ ३११०२,११५,११७.११८,४१२२ । निद्दायमाण (निद्रायमान) उ ३।१३० निग्गच्छ (मिर-गम्) निगच्छइ उ १११६; निद्ध (स्निग्ध) प१४ से ६.५,७,१२६.२१४, ३।१३; ४.१३,५।१६ २१८,२२१,२२६; १३३२२; १७११३८ निग्गच्छित्ता (निर्गत्य) उ ११६,३।२६,४।१३ __ ज ३।१०६ निग्गय (निर्गत) चं ६ सू ११४ उ ११२,१६२।६; निन्न (निम्न) उ ३१५५ निष्पंक (निप्पङ्क) प २।३०,३१,४६,५६,६३, ३१५,१२,२४,८६.१४७१५५,१५६,४१४,१०; ५।१४,२६,२७,३७,३८ ६४ ज १३१ निष्पपसिणशागरण (निःस्टप्रश्नव्याकरण) निग्घोस (निर्घोष) ज ३११२,७८ उ ३.२६ निघस (निकष) ज ११५ निप्पाण (निष्प्राण) उ १२६० ६१ निचिय (निचित) ज ५५ Vनिष्फज्ज (निर्- पद्) निष्फज्जए ज ७।११२।४ निच्च (नित्य) परा२४,२६,२७ सू१०।१२६१४ निष्फज्जति पहा२६ निच्चच्छणय (नित्यासः क, नित्यक्षणक) उ ५५ निष्फन्न (निष्पन्न) ज २११८ निच्चालोय (लित लोक) सू २०८१६ निम्फाव (निप्पाव) प ११४५३१ ज ३।११६ सेम निच्चिट्ठ (निश्चेष्ट) 3 १।१०.६१ निम्भंछ (निर| भत्सं ) निभच्छेइ उ ११५७ निच्छुभिउकाम (निक्षेप्नुकाम) उ १११३ निभच्छणा (निर्भर्सना) उ ११५७,८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003573
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Chandapannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages390
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_chandrapragnapti
File Size12 MB
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