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________________ जसधर-जहाणोगाहणग जसधर (यशोधर) ज ७११७।१ ७३ से १६,३३१२ से १३,१५ से १७:३६।८ जसभद्द (यशोभद्र) ज ७।११७।१ सू १०८६।१ से १०,१७,१८,२०,३०,३४,४४,६१,६६,६८, जसम (यशस्वत्) ज २१५६,६१ ७०७२ से ७४,७६,६२ ज २१४४,४५,५८, जसवई (यशस्वती) ज ७६१२१ सू१०।६१ १२३,१२८,१४८,१५१,१५७,४११०१,७२८, जसोकित्ति (यशःकीर्ति) ५ २३.१६,२०,१५३ ५७,६०,१८२,१८७ से १९६,२०६ सू १।१४; जसोकित्तिणाम (यश:कीर्तिनामन्) २३१३८, १८।२०,२५ से ३४,१६१२,२०१३ १२७,१८८ जहण्णग (जघन्यक) १७११४४,१४६,२३५१५२, जसोधर (यशोधर) सू १०८६१,८८।१ १८४ जशोहरा (यशोधरा) ज ४।१५७।१:५६।१; जहण्णगुण (जघन्यगुण) १ ५१३६,३७,५८,५६,७३, ७/१२०११ ७४,८८,८६,१०६,१०७,१८६,१६०,१६२, जस्संठित (यत्संस्थित) सू ४१३ १६३,१६६,१६७,१६६,२००,२०२,२०३, जह (यथा) प ११११३ उ १.१०६ २०६,२०७,२१०,२११,२१३,२१४,२१७, जहण (जघन) ज २१५ २१८,२२०,२२१,२२३,२२४,२४१,२४२ जहण्ण द्वितीय (जधान स्थितिक) प ५१२३,३४,५५, जहण्ण (जघन्य) प १७४, २१६४१८,४१ से ५४, ५६,७०,७१,८५,८६,१०३,१०४,१७३,१७४, ५६ से ६७,६६ से ८६,६१ से १३३,१३५ से १७६,१७७,१८०,१८१,१८३,१८४,१८६, २६६,२६८,५१४०,४१,४४,४५,७७,७८,६२, १८७,२३५,२३६ ६३.९६,६७,११०,१११,११४,११५,१५३, जहण्णठितीय (जघन्य स्थितिक) प ५१५६ १५४,१५६,१५७,१५६,१६२,१६३,१६५,१६६, १६८,१६६६.१ से १८,२० से ४५,६०,६१, जहण्णपएसिय (जघन्यप्रदेशिक) प ५२२८ ६४,६६ से६८,१२०,१२१,१२३ ;७४२,३,६ से जहण्णपदेशित (जघन्यप्रदेशिक) १५॥२२८ २९,१११७०,७१:१२१६,१३१२२१२,१५१४० से जहण्णपदासय (जघन्यप्रदाशक) प ५१२२७ ४२,१७१४६:१८०२ से ४,६,८ से १०,१२,१४ जहण्णपय (जघन्यपद) ज ७।१६८,१६६,२०२, से १६,१८ से २४,२६ से २८.३० से ३६,४१ २०४,२०६:१२१३२ से ५४,५६,५७,५६ से ६७,६६ से ७४,७६ से जहण्णमति (जघन्यभति) प ५१६२,६३ ८१,८३ से ८५,८७,८६ से ६१,६३,६५,६६, जहण्णय (जघन्यक) प १५२६४,१७।१४४; १८,१०३,१०४,१०५,१०७.१०८,११०,११३, २१११०५:२३।१६३ ज ७।२६ सू श१४,१६, ११४,११६,११७,११६,१२०,२०१६ से १३, १७,१६,२१,२२,२४,२७२।३।३।२:४१७,६; ६१,६३,२११३८,४० से ४२,४८,६३ से ७१, ६।१८।१;६२ ७४,८४,८६,८७,६० से ६३;२३१६० से ७६, जहण्णुक्कोसग (जघन्योत्कर्षक) प १७।१४६ ८१,८३ से ६२,६५ से ६६,१०१ से १०४, जहण्णुक्कोसय (जघन्योत्कर्षक) प १५।६४; १११ से ११४,११६ से ११८,१२७,१२६, २१४१०५ १३१,१३३ से १३५,१३८,१४०,१४२,१४३; जहण्णोगाहणग (जधन्यावगाहनक) प ५।२७:२८, १४७,१५१ से १५३,१५५,१५७,१५८,१६० ४८,४६,५२,५३,६७,६८,८२,८३,१००,१०१, से १६२,१६४ से १७३,१७६,१७७,१८२,१८३ १५३,१५४,१६२ १६३,१६५,१६६,१६८. १८६ से १८८,१६० से १९३,२८१२५,४७,५०, १६९,२३३,२३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003573
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Chandapannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages390
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_chandrapragnapti
File Size12 MB
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