SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६० उवटुव-उवलालिज्जमाण Vउवठ्ठव (स्थापय ) उवट्ठति ज ३१२०८, उबभोग (उपभोग) ११४६ १५. उबट्ठति ज ३११२० उपट्ठवह उवभोगतराय (उपभोगान्तराय) प २३१२३ म २१५.४:३।२०७ उ११७ उवमा (उपमा) प २६४।१७:३५।२५,२६ उववेत्ता (उपस्थाप्य) ११७ ज ३१२४।४३०२,४५१२,१३१४ उ ३१६८ उवाइ (उपस्थायिन् ) ज ३।३२१ उवयार (उपचार) प २३०,३१,४१ ज २।१०, उववासाला (जस्थानशाला) ५,१२,१७, १५.६५:३७,१२,८८,१३८,४११६६,५१७, २१,२८,३४,४१, ४६५८,६६,३४,७७,१३५, ५८,७१३३११ मू २०१७ १४७,१५१,१७७,१८८,२१६ उश१६,४१, उवयारियालयण (उपकारिकालयन) ज ४१११८ ४२,१२४,४।१२:११६ उवरक्खिय (उपरक्षित) प२।३०,३१,४१ उदिव्य (उपस्थित) ११२० उरि (उपरि) प २२१ से २७,३० से ३६,४१ उवणी (उमणी ) उवर्ण६ ज ३१२६,३६,४०, मे ४३,४५१२१३२ ज ११३५,४।१५६।१, ४७,५६,६४,७२,१३३,१४५,१५१ उवणेति ब ३८१,१२६:१६१ । १।४५ उवह उरितल (उपरितल) ४।१४२६१,२,४।२१३ उरिम (उपरितन) प २१२७।३,६२११ उवणीयअवगीयवयण (उपनीतापनीत वचन) उरिमउवरिमगवेज्जग (उपरितनोपरितनग्रेवेयक) प११८६ प१११३७,४१२६१ से २६३७१२८,२८१६५ उवणीयवयण (उपनीतवचन) प ११८६ उवरिमगवेज्जग (उपरितनग्रंवेयक) प २१६२ उवणेत्ता (उपनीथ) 1३।१२६ ३११८३,६।४१,५६,२०१६१:३३:१७ उवत्या मिया (स्थानिका) । ३१२६,३६,४७, उपरिमगेवेज्जय (उपरितनग्न व्यक) ५ २०६१ उरिममज्झिम (उपरितनमध्यम) प२८१९४ Vउवः (- ) उवदमहज 21५७,५८, १२.१४ : ११२३ उवाति) ज ५१५७ उरिममजिसमगेवेज्जग (उपरितनमध्यमग्रेवेयक) "वदराति गू२०१२ प११३७४१२८८ मे २६०७।२७ उपसण (दन २६१ उरिमठिम (उपरितनाधस्तन) १२८१९३ उपसाप (दशयितुम् ) 3 ३१११२ उरिमठिमगवेज्जग (उपरितनाधस्तनप्रैवे. क) उत्तिा (उपदश्य) उ३।२१५ प१११३७४२८५ मे २८७७१२६ उबदस्यि (उपदोस) ५१।११२ उरिल्ल (उपरितन) प २१६४:५११३१.१३४, उतरता (पद) प ५१५८ १३६,१४०,१४३,१६६,१६६,१८१,१८४, उवयंसेमाण (उपदशंयत्) ३४१२२ ज ५१४४ १६३,१६७,२००,२२८,२३४:१६।३४; सु २०१३ २२१५१,२०,७१.२४ ज २१११३;४१२५३, उतक्टिठ (जगदिष्ट) प ११०१४ च ४३ २५६,२५६१७३ से १७५ सू १८६१ Vउदिम (उस दिश) उवदिगई प २१६४ ।। उरिल्लय (उपरितन) प २८११४३ उदणि सिता उपदिश्व) पश६४ उवल (उपल) प १२०१ ज ४।२५४ उपदा (उपद्रव) २१४०।३।१०५ उवलद्ध (उपलब्ध) प ११०११६ उ ३।१०१ उवप्पयाण (उपादान) १३१ उवलालिज्जमाण (उपलाल्यमान) ज ३१८२,१८७, उयबूह (प ) ११०१:१४ २१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003573
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Chandapannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages390
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_chandrapragnapti
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy