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________________ बीइभय-वच्छ वीइभय (बीतिभय) पशE३४ बीरियंतराइय (वीर्यान्तरायिक) प २३६५६ वीइय (बीजित) ज ३।६,२२२ बीरियंतराय (धीर्यान्तराय) प २३।२३ बीइवइत्ता (व्यतिब्रज।) ज१११६,४६,४१५२ वीवाह (विवाह) ज २।१३० उ५१४१ वीस (चित्र) प २१२० से २७ वीईवयमाण (व्यतित्रजत) ज २१६०३१२६,३६, वीस (विशति) प२।२४ ज ११२३ मू ७१ ४७,५६ ६४,७२,१३३,१४५,५१४४,४७,६७ उ ५।२८ वोचि (वीचि) ज २१५:३१८१ वीस (विशतितम) १०.१४१४ वीणग्गाह (वीणानाह) ज ३११.७५ वीसइ (विंगति) ज ३।१०६ च ६५ सू ११६१५ बीतराग (जीनाम) प१:१०७ से ११०,११५, वीसइअंगुलवाहाक (विशव्यंगुलबाहुक) ज ३।१०६ ११७ से १२३ वीपति (विशति) प २३७५ योत्तरागसंजय (वीरागत) ११७४२५ वीसतिम (विंशतितम) सू १२:१७ वोतसोग (वीतशोक) २०१८ वीसधा (विशतिधा) सू १२२३० वोतिमिर (वितिभिर) । २०६३ बीससा (सिमा) १६.५५; २३३१३ से २३ वोतिययभाण (व्यतित्) ज ३।११३; ५१४४ चीससेण (विश्वसेन) ज ७१२२२२ सू १०१८४२ 1वीतीवय (वि:-अति-व्रज्) वीतिकथति वीसहा (विशतिधा) सू १०११४२,१४७ भू २००२ वीसायणिज्ज (विस्वादनी) प १७।१३४ वीसुत (विश्रुत) ज ३।३५,११६ वीतीवतित्ता (अतिव्रज:) प २१६३ वीहि (बीहि) प ११४५।१ ज २।३७ वीयणी (बीजनी) ज ३१३ विच्च (वच ) बुच्चइ प ५१७,३४,१०१,११६,१६९; वीयराग (नराग) प ११००,१०४ से १०७, ११॥३,४१,१७१२,१३,२०,२७,११६,११६, १०६ से १११,११५,११६.११८,१२१ से १२३ १५२,१५५,२०१३६ ज ११४५,४७, २।४।१; वीयराय (बीतराग) प ११०२ से १०४,११६, ३।१,६८,२२६४।२२,३४,५१,५४,६०,६१, ११७,११६,१२०.१२२ ८०,८५,८६,६७,१०२,१०७,११३,१५६,१६१, वीयसोय (तांक) ज ४२१२,२१२१२ १६६,१७७,२०८,२११,२६१,२६४,२७०, सू२०६७ २७३,२७६,७१६६,१८५,२०६,२१३,२२६ वीर (धीर) ३१९,१०३,१०८ से १११,२२२ उ ३।३८ दुच्चंति प २२१४५,३०११७ बुच्चति चं११ उश२२,१४०,21५,१० प ५३,५,७,१०,१२,१४,१६,१८,२०,२४, वीरंगय (बीगङ्गद) उ ५।२५,२७ से ३० २८,३०,३२,३७,४१,४५,४६,५३,५६,५६, वीरकण्ह (हर कृष्ण) उ ५.१० ६३,६८,७१,७४,७२,८३,८६,८६,६३,६७, वीरण (वीरण) प १४४११ १०४,१०,१११,११५,१२७,१२६,१३१, वीरवर (वीरवार) सू २०६।६ १३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७, वीरसेण (ओरसेन) उ ५.१० १५०,१५४,१५७,१६३,१६६,२०३,२४२; वीरिय (वीर्य), २३।६ ज २५१,५४,७१,१२१, १०॥३:१११३,३६,४१,१५१४५,४८,९८; १२६,१३०,१३८,१४०,१४६.१५४,१६०, १७१२,४,६,६,११,१६,१७,२०,१०७,१०६, १६३,३।३,१२६,१८८७१७८ २०११, १११,११६,११६.१५०,१५५, २०।३६,५१, २०६३,५ २२१८,४५, २३।१६०; २६.१७,१६ से २१ ; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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