SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 549
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वइरवेड्या वग्ग वइरवेडया (वज्रवेदिका) ज १।३७ ४ १२७५।२८ वइरसारमइया (वज्रसारमतिका) ज ३८८ वइरसेणा ( वज्रसेना ) ज ४।२३८ वइराड (वैराट ) प १६३१४ वइरामय ( वज्रमय ) ज १७,८,११,२४; २११२० ३।३०,४१३,७,१३,१५,२४ से २६, २९, ३१, ३६,६६,६८,७४,६१,६३,१२८, १४६ ६ ५ ३८, ४३, ७ १७८,१८५ सू १८/२३ वइरोयणराय ( वैरोचनराज ) प २२३३ ज २।११३ वरोर्याणिव (वैरोचनेन्द्र ) प २।३३ ज २।११३ वह रोभणाराय ( वज्रऋषभनाराच ) प २३/४५, ४ ज २४६ समय ( वाक्समित ) ज २२६८ इसाह (वैशाख) ज ३।२४७ १०४, १४६, १५५ सु १०११२४ उ ११२२,१४०, ३१४० बसाही ( वैशाखी) ज ७ । १३७ सू १० ७,१७,२३, २६ इस्सदेव (वैश्वदेव) उ ३।५१,५६,६४ (वाच् ) प ११५, ८, २१ से २६ वंक (व) ज २।१३३ गति (गति, वक्रगति ) प १६१३८, ५३ बंग (वज) प ११६३|१ ज २।१५ वंजण ( व्यञ्जन ) ज २११४ सू २०१७ वंजणोग्गह (व्यञ्जनावग्रह ) प १५५८२ १५।६८,६६, ७१ से ७३,७५ वंजुल ( वञ्जुलक ) प १७६ वा (वन्ध्या) उ ३६७,१३१ वंत (वान्त ) प १८४ २०१२ / बंद (वन्द ) वंदइ ज ११६ : २२६० ५।२१,६५ उ १११६; ३२८१४।१३; ५१२० वंदति उ ४ १६,५/३६ वंदामि प १|१|१ ज ५।२१ सू २०१६१६ उ ११७ दिज्जा उ ५।३६ वंदीहामि उ ३१२६ वंदेज्ज ज २२६७ बंद (बृन्द ) ज ३१२२,३६,७८ उ १११६ वंदण ( वन्दन) उ १११७ Jain Education International १०३३ वंदणकलस (वन्दनकलश) ज ३२७,८७,५।५५ वंद कल सहत्य ( हस्तगतवन्दनकलश) ज ३।११ वंदणवत्तिय ( वन्दनप्रत्यय) ज ५१२७ बंदणिज्ज ( वन्दनीय ) सू १८१२३ दिऊण ( वन्दित्वा ) चं ११४ वंदित्ता ( वन्दित्वा ) ज १।६ उ १।१६; ३८१; ४११४;५।२० वंदिया ( वन्दिका ) उ ४।११ बंस (वंश) १ ११४१२ बांस वंस (वंश) प ११।७५ ज २।१२४, १५२३/३१, १०६ उ५१४३ समूल (वंशमूल ) प ११४८८ वंसी (वंशी ) प १४७ वंसीपत्त (वंशीपत्र ) प २६ समुह (वंशी मुख ) प १४६ वक्कंत (अवक्रान्त ) प १२४८१५३ ज २२८५ वक्कंति (अवक्रान्ति) प१ । ११४ / वक्कम (अव + क्रम् ) वक्कमइ प ११४८१५१ वक्कमंत १२०, २३, २६,२६,४८,६१२६ वक्कमति सु १६।२२।१६ are ( वल्कल ) उ ३।५१।१ arcarfi ( वल्कवासिन् ) उ ३३५० ara ( वक्षस् ) ज २११५ खार ( वक्षस्कार ) प २३११५५५ । २ ज ४।२१२; ६१० वक्खारकूड ( वक्षस्कारकूट ) ज ४।२०२६।११ वक्खारपव्वय (वक्षस्कारपर्वत) ज ४१६४, १०३ से १०८,१४३,१६२,१६३,१६६,१६७,१६६, १७२ से १७४, १७६,१७८ से १८१,१८४, १८५.१६०,१६१, १६६, १६७, १६६,२००, २०२ से २०५,२०८ से २१२,२१५, २६२; ५१५५६।१० वग ( क ) प ११।२१ ज २।१३६ वगी ( वृकी ) प ११।२३ वर (वर्ग) २६४११५, १६, १२११०,३२,३६, ३७ उ १५ से ८ २ १३ १, २, ४ ११, ३, ५ १, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy