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________________ तालु-तित्थगरत्त तालु (तालु) प २।३१ ज २११५, ३।३५,१०६, ४४,४६,५८ उ १११६,२१,३११०३,११३, ७११७८ ४।१३,१६ ताव (तायत्) प २४।७ उ ११५१ तिग (त्रिक) ज २६५, ३११८५,२१२,२१३, ताव (ताप) ज ५१३२ उ ३।५० ५७२,७३,७४१३१।१ उ १९८ तावइय (ताक्त) ज १११६,३।८४।१२१,१४०।२, तिगिछद्दह (तिगिच्छद्रह) ज ४1८८ से ११ २१७ तिगिच्छकूड (तिगिच्छकूट) ज ४।२७५ तावक्खेत (तापक्षेत्र) सू २१३ ; ४।५ ; ६३१; तिगिच्छायण (चिकित्सायन) सू १०१११६ १९४२२११४,१६१२३,२६ तिगुण (त्रिगुण) ज २१६, ७७,६६,६०,११८,१२१, तावक्षेत्तसंठिति (तापक्षेत्रमंस्थिति) ज ७।३१,३५, सू १०।६०,६१,१८१६ से १३ सू४।१,३,४,६ तिगुणित (त्रिगुणित) सू १६।२२।२३,२५ तावखेत (तापक्षेत्र) ज ७३२,५५,५८,१६८,२१२, तिजमलपय (त्रियमलपद) प १२१३२ तिछाणवडित (त्रिस्थानपतित) प ५१२,१४,१६, ताखेत्तयह (तापक्षेत्रपथ) सू १६।२२१५ २०,२६,५३,५७,१६,६३,६८,७२,७४,७८,८३, तावण्णत्त (तद्वत्व) प १६४६१७११५, १४,६७,१०१,११२,११५.११६,१२२ ११६,११८,१४८,१४६ हिट्ठाणवडिय (त्रिस्थानपतित) ५ ५।१८ तावतिय (तावत् ) प १५३५१,५२,६२ ज ४।१० तिणिस (तिनिश) ज ३।३५,१७८ तावत्तीस (वात्रिंश) ज ५५० तिण्ण (तीर्ण) ज ५।२१ तावत्तीसग (बायस्त्रिंशक) प २१३२,३३,३५,४६ ििततिक्ख (तितिक्ष) तितिक्खइ ज २१६७ से ५१ ज ५११६ तित्त (तप्त) प श६४११६ तावतीसय (बायस्त्रिंशक) ज २६६० तित्त (विक्त) प १४ से ६५1५,७,२०५:११।५८, तावत्तीसा (त्रायस्त्रिंशक) १२।३० से ३२ १३।२८२३४६,२८१२०,३२,६६ ज २१४५ तावस (तापस) प २०१६१ उ ३१५०,५५ तित्तिर (तित्तिरि) प १७६ सू १०११२० तावसत्त (तापसल) उ ३१५०,५५ तित्तीस (त्रयस्त्रिंशत् ) ज ४८ ताहि (तत्र) प २४१६ तित्थ (वीथं) ज ३३१४,१५,१८,२०,२२,३०,३१; तम्हे (तदा) ज ७५६ उ ११५२, ३।१२३ ४।३,२५,५५५,६।६,१२ से १४ ति (त्रि) प १११३ ज ११७ च ३।३ सू १७ तित्थकर (तीर्थकर) ज २६३,१२५ १।१४ तित्थगर (तीर्थकर) प २०११।१ ज २१६०,६५, तिउड (द०) ज ४।२०२ १०१ से १०३,११३ ११४,११६,१५३; तिदु (तिन्दु) प ११३६।१ ५१७,२२,७०,७३ तिदुय (निन्दुम) प १६३५५ तित्थगरचियगा (तीर्थकरचिनया) ज २११०५ से तिदूय (निन्दुक) प ११४८१४८ ११२ हिक्ख (तीक्ष्ण) २१३३७।१७८ तित्थगरणाम (नीर्थकरनामन ) प २३।३८,५६, तिक्खरग (तीक्ष्णाग्र) ज ७१७८ १२६,१४६,१७४,१८६ शिक्खधार (तीक्षार) ज २११३१,३।१०६ रिस्थगरणामगोय (तीर्थकरनामगोत्र ) प २०१३६ तिक्खुतो (विल) ज१६; २१६०, ३५,८८,८६, तित्यगरत्त (तीर्थकरत्व) ५२०३८ से ४०,४५, ६८,१३१,१३५,१५५,१५६,५।५,२१ से २४, ४६,५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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