SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ णिवाण-णीलय vणिव्वाण (निर-वापय) णिवाविस्सति हिस्संग (निःसङ्ग) ज ५।५८ ज २११४१ णिवाहि ज ५१२८ णिवावेंति हिस्सग्गरुइ (निसर्गरुचि) प ११०११३ ज २।११२ णिवावेह ज २११११ णिस्सा (निश्रा) प ११२०,२३,२६,२६,४८ णिध्वुइकर (निर्वतिकर) ज २१६४,३३, ४११४६ णिस्साय (निश्राय) ज ३११०६ णिवइकरण (निर्वतिकरण) प १११२ णिस्सील (निःशील) ज ११३५ णिवृतिकर (निर्वतिकर) ज ४।१०७ णिस्सेस (निःश्रेयस् ) ज २१७१ णिसंत (निशान्त) ज ५१२६ णिहटु (निहृत्य) ज ३।६ जिसम्म (निसर्ग) १११०११२ इणिहण (नि+ हन् ) णिहणंति ज ५११३ णिसट्ठ (निःसृष्ट) जे ३१२५,३८,४६,४७,१३२ णिहणित्ता (निहत्य) ज ५॥१३ मिसढ (निषध) प १६५३० ज ४।९६ णि हयरय (निहतरजस्) ज ५१७ णिसढकूड (निषधकूट) ज ४।६६ णिहि (निधि) प १५३५५१२ ज ३१६७११३,१४, णिसष्ण (निषण्ण') ज २१८८; ३।६,८१,२२२ णिसम्म (निशम्य) ज ३१६ णिहिय (निहित) ज ३१११९,२२१ णिसह (निषध) ज ४८१,८६,८७,६७,६८,२०१ ।। णिहिरयण (निधि रत्न) ज ३११६७,१७०,७/२०१, से २०३,२०६,२०७,२०६,२३८,२६२ २०२ णिसहकूड (निषधकूट) ज ४१२३६ णिहुय (स्निहूक) प ११४८।४१ णिसहद्दह (निषधद्रह) ज ४१२०७ इणी (नी) णेइज ७/१५६,१५७,१६१,१६५, Vणिसिर (नि+सृज्) णिसिरइ ज ३।२४,२६, १६६ ; ३।१६३ गेति ज ७१५६ सू १०१६३ ३७,३६,४५,४७,१३१,१३३ णिसिरंति णेति सू १०६३ ३११६२,४१५,७,५५,७ णिसिरति भणी (गम्) णीति ज ३।१०६ प ११६७१,७२,८४,८५ गीइ (नीति) ज ३।१६७ णिसिरण (निसजन) १ ११७१ णोणिया (नीनिका) प ११५१ मिसिरमाण (निमृजत् ) प १११७१ णीम (नीप) प १।३६६३ जिसीइत्ता (निषद्य) ज ३४६ णीय (नीत) प १५५१०२ इणिसीय (नि+पद) णिसीएज्ज प ३६।११ णीयतर (नीचतर) ज ४।५४ णिसीयइ ज ३१८,४१,४६,५८,६६,७४,१४७, णीयागोय (नीचगोत्र) प २३१२२,५७,५८,१३२ २१५,२२२ णिसीयंति ज ११३,३०,३३; जीरय (नीरजस्) प २१३०,३१,६३, ३६।६३,६४ ७,४१२,५४२ णिसीयति ज ३१८८ ज १५१८,२३,३१,२०६५।५८ इणिसीयाव (नि+पादय) णिसीयाति णीरागदोस (नीरागदोष) ज ५१५८ ज ५।१४,१७ णील (नील) प १६ से ८,२१३१,२१४०।११; णिसीयवेत्ता (निषाद्य) ज ५।१४ ५।५,७,१३१६१७१९४२३११०४,२८१३२, णिसेग (निषेक) २३१६० से ६४,६६,६८,६६, ६६ ज ३१३१,४१२६४ सू २०१२,८,२०१३) ७३,७५ से ७७,८१,५३,८५ से १०,६२,६५, णीलकणवीरय (नीलकरवीरक) प १७।१२४ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४,११६ णीलकूड (नीलकूट) ज ४।२६३११ से ११८,१२७,१३०,१३१,१३३,१७६,१७७, पीलबंधुजीवय (नीलबन्धुजीवक) ५१७११२४ १८२,१८३.१८७ गीलय (नीलक) प १७.१२६ सू २०१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy