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________________ ८७२ कण्णपीढ-कतिविह कण्णपीढ़ (कर्णपीठ) प२३०,३१,४१,४६ ७,६,११,६।१२,१६,२५,१०१३ से ५,२६, कण्णमूल (कर्णमूल) ज ५११६ २८,२६११७६,६०,१५:१३,१६,२६,२८, कण्णा (कन्या) ज ३१३२ ३१,३३,६४,१७१५६ से ६६,७१ से ७६,७८ कण्णायत (कर्णायत) ज ३।२४,१३१ से ८३,१४५,१४६,२०१६४;२१११०४,१०५; कण्णायय (कर्णायत) उ ११२२,१४० २८१४१,४४,७०,३४१२५:३६।३५ से ३७,३६ कण्णिमा (कणिका) ज ४७ से ४१,४८,४६ सू १३१६,८,१०,१३,१८१७, कणिया (कणिका) प ११४८१४५ ज ३२११७; ४१८,१५,१६ कति (कति) प ६१२०,१२१:८1१ से ३,१०११ कणियारकुसुम (कणिकारकुमुम) प १७१२७ ,१५,१११३०१११११४२,८८,१२११ से ५; कणिलायण (कणिलायन) सू १०६५ १४.१ से ३,५,११ से १४,१७; १५३१११, कण्णिल्ल (कणिल) ज ७१३२१६ १५.१,१२,१७,१६,२०,२५,३०,५४,५६, ५७,७७ से ८०,१३३,१३४,१७१३६ से कण्ह (कृष्ण) प ११४४१३:११४८१७,११६३१६; ४०,११२ से ११४,१२६,१३६,१३७, २।२०:१७।२६,५६ से ६६,७१ से ७६,८१ १४७,१५६,१५७,१५६ से १६१,१६३; से ८७,९४,१०० से १०४,१०६,१०६,११२, २१।१,६५,६६,२२११,२१ से २३,२६,२७, १६६,१६७,१६६ से १७२ उ १७; ५१६,१५, २६,३०,३२ से ३६,४२ से ४७,५७,६६,८३, १७ से १६ ८४,८६,८७,८६,६०२३११।१,२३३१,२,६,७, कण्ह (बल्ली) (कृष्णवल्ली) प १४०।३ २४,२४११ से ५,१० से १५:२५.१,२,५; कण्हकंदय (कृष्णकंदक) प १७।१३० २६.१ से ४,८,९,२७११ से ३,५,६:२८।३१; कण्हकडबु (दे०) प १४८।३ ३६।१,४ से ७,४२,४३,५३,५४,५८,६२ से कण्हलेस (कृष्णलेश्य) प १३३१५; १७१८३,६२, ६४,७७,७८ ज ११५,४।२६० चं ॥३,५ ६४,६५,१०३,१०४,१०७,१०८,१२१,१२६, सू ११६१३,१।९१ से ३:१०।८ से १६,६३ से १७०,१७२,१८१६६,२३:१६५,२०० ७४,७६,१२११,१३१४,५,१५ से ३७,१८११४ कण्हलेसट्ठाण (कृष्णलेश्यास्थान) प १७।१४६ से १७१६१ कण्हलेसा (कृष्णलेश्या) प १७:१२१:२८११२३ कतिपएसिय (कतिप्रदेशिक ) ११५१११,२४ कण्हलेस्स (कृष्णलेश्य) प १३३१४,१६ कतिपदेसिय (कतिप्रदेशिक) प १७१४० कण्हलेस्सट्ठाण (कृष्णलेश्यास्थान) प १७:१४६ कतिप्पगार (कतिप्रकार) प ११।३०।१ कण्हलेस्सा (कृष्णलेश्या) प १३३१४,१६,१६१४६, कतिभाग (कतिभाग) ५२८1१।१,२८।२२,३४,३६ ५०;१७१३६,३८,३६,४१,४३,४७,५०,८२, ११४ से ११६,११८,१२१,१२३,१३०,१३६ कतिभागावसेसाउय (कतिभागावशेषायुष्क) से १४५,१४७ से १५०,१५६ से १६४ प६११४ से ११६ कण्टलेसापरिणाम (कृष्णलेश्यापरिणाम) ११३१६ कतिविध (कतिविध) प ६१११८,१७१३६ कण्हसप्प (कृष्णसर्प) प ११७० सू २००२ कतिविह (कतिविध) प ५।१,१२३ से १२५; कत (कृत) प २८११०५,३४११६ सू २०१७ ६।११६६।१,१३,२०,२६:११॥३१ से ३७, कतर (कतर) प ३३८ से ४८,५० से १२०,१२२ ७३,८६,१३१ से १३,२१ से ३१,१४७,६; से १२४,१७४,१७९ से १८२६।१२३,८१५, ११५८ से ६०,६२,६३,६५ से ७४,७६; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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