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________________ अकुडिल-अम्गमहिसी ३२ से ३४,३६,३७,४५ अकुडिल ( अकुटिल ) ज २।१५ अवमाण ( अकुर्वत्) सू २०१७ अकेसर ( अकेसर ) प ११४८४६ अकोह (अक्रोध) ज २१६= अक्क ( अर्क ) प १|३७|३ अक्कबोंदी (दे० ) प ११४०५ v अक्कम ( आ-: क्रम्) अक्कम १।११६ अक्कमाहि उ १।११५. अक्कमिता ( आश्रम्य ) उ १।११५ अक्किज्ज (अक्रेय ) ज ३।१६७११३ अक्किट्ठे ( अक्लिष्ट) ज २०४६ अक्कुस्समाण (आक्रोशत् ) उ ३११३० अक्कोप्प (अकोव्य) ज २।१५ अक्कोसमाण (आक्रोशत् ) उ २०१३० ara (अक्ष ) ज २६,१३४ अक्खय (अक्षय) ज १|११,४७, ३।१६७,२२६; ४।२२,५४,६४,१०२, १५६ : ५१२१ ७।२१० ३।४३, ४४ अक्खर (अक्षर) ज २१६,१३४ अक्खरपुट्ठिया ( अक्षरपुष्टिका 'पृष्टिका ) प १६८ अक्खाइया (आख्यायिका ) प ११।३४।१ अवखाइयाणिस्सिया (आख्याधिकानिश्रिता ) प ११३४ अक्खात (आयात) प ११४६,६६,७५,८१; २।२१ से २६,३०,३२ से ३९, ४१, ४३,४६, ४८ से ५२, ५५ से ५७.६० मे ६२ सू ३१; १३१२ अक्खा (आयात) प ११५०,५१,६०,७६, २१२०,३१,५८,५१ ज २६४१२१; ६।१०, ११, १४, १५, १८ से २२,२६७ ४,६३ ८७ १०।१२७ ( अक्खिव ( आ + क्षिप् ) अक्खिवइ उ १।१०५ अक्खिविकाम (अक्षेतुकाम) उ १।१०५ १. टीका में अक्षरस्पृष्टिका है । Jain Education International अक्खीण (अक्षीण ) प ३६८२ अक्खोड (नोट) प १६५५ अक्खोटय (अक्षोटक ) प १७ ११३२ अक्खोभ ( अक्षोभ ) ज ३१३ अगंण ( अगत्वा ) प ३६/८३३२ ८१३ अगंथ (अग्रन्थ) ज २७० अगक्छमाण ( अगच्छत् ) सू २२ अगड (दे० ) प २२४, १३.१६ से १६, २८ : ११।७७ ज २।३१ अगणि (अग्नि) प ११४८ ५६२।२० से २५ अगणिका (अग्निकाय) ज २३१०५ से १०८ अगत्थि ( अगस्ति ) प १३८ २ ज २११० सू २०१६, २०१८१४ अगरुलहु ( अगुरुलघुक ) प १५ ५७ ज २२५१, ५४, १२१,१२६,१३०,१३८, १४०, १४६, १५४, १६०, १६३ freeहज्जव (अगुरुलघुकपर्यव) ज २।१४६, १५४,१६०,१६३ अगरु लहु परिणाम (अगुरुलघुकपरिणाम ) प१३१२१,३० अगार ( अगार ) प २०११७, १८ ज २२६५,६७,८५, ८७ उ ३।१३,१०६ से १०८, ११२, ११८, १३६,१३८, १३६, ४११४, १६५३२,४३ अगारवास ( अगारवास ) ज २८७ ३।२२५ उ ३।११८ अगुरु (अगुरु ) जं २।१०६,११० अगलघुअणाम (अगुरुलघुकनामन् ) प २३।५१ अगुरुलणाम (अगुम्लघुनामन् ) प २३३८, ११ अग्ग (अग्र ) प २।३१ ज ११३७, २०१२०, ३११२, १८,२२,३१,७६,८८ १०७,१२५ से १२८, १५१,१५२, १५६, १८० अगुलिया (अगुलिका) उ ११५६, ६१ से ६३ ६४,८६,८७ अगभाव (अग्रभाव) ज ७|१३२१. सू १०६४ अगमहिती (महिपी ) प २०३० से ३३,३५, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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