SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ विषय-वस्तु - इसका मुख्य प्रतिपाद्य जम्बुद्वीप है। पारिपार्श्विक विषयों की सूची बहत लंबी है। भगवान ऋषभ, कुलकर, भरत चक्रवर्ती, कालचक्र, सौरमण्डल आदि अनेक विषय इसमें प्रतिपादित हैं। इनमें भरत चक्रवर्ती का वर्णन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। चक्रवर्ती के चौदह रत्नों और नौ निधियों का वर्णन बहुत ही सजीव है। कालचक्र के वर्णन में वर्तमान अवसर्पिणी के छठे अर का जो वर्णन है वह बहुत रोमाञ्चक है । प्रलय की जितनी भविष्य वाणियां उपलब्ध हैं, उनमें यह सर्वाधिक ध्यानाकर्षण करने वाली है। इसे पढ़ते-पढ़ते अणुयुद्ध की विभीषिका सामने आ जाती है। भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर में बहुत एकरूपता रही है। भगवान् ऋषभ को आदिकाश्यप और भगवान् महावीर को अन्त्यकाश्यप कहा जाता है। भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर दोनों ने पंच महाव्रत धर्म का प्रतिपादन किया था। भगवान महावीर की भांति भगवान् ऋषभ भी एक वर्ष से कुछ अधिक समय तब सवस्त्र रहे. फिर अचेल हो गए। भरत चक्रवर्ती काच के महल में बैठे थे। वे काच में अपना प्रतिबिंब देख रहे थे । देखते-देखते उन्हें कैवल्य प्राप्त हो गया। उत्तरवर्ती ग्रन्थों में इस कथा का विकास हुआ है। अंगुली की अंगूठी गिर जाने पर सौन्दर्य की कमी का अनुभव हुआ और उस चितन की गहराई में गए, अन्तत: केवली हो गए। योगलिक व्यवस्था की समाप्ति, समाज और राज्य-व्यवस्था के प्रारंभ का सुन्दर चित्र प्रस्तुत आगम में उपलब्ध है। भगवान् ऋषभ के सर्वतोमुखी व्यक्तित्व को समझने के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका "श्रीमद्भागवत" में वणित ऋषभ के साथ तुलनात्मक अध्ययन करना बहुत महत्त्वपूर्ण प्रस्तुत आगम सात अध्यायों में विभक्त है । इन अध्यायों को "वक्खारो" या "वक्षस्कार" कहा गया है। उनके विषय इस प्रकार हैं---- १. जम्बूद्वीप २. कालचक्र और ऋषभ-चरित ३. भरत-चरित १. जंबुद्दीवपण्णत्ती, २११३०-१३७ २. धनञ्जय नाममाला, ११४, पृ० ५७ वर्षीयान् वृषभो ज्यायान् पुनराधः प्रजापतिः । ऐक्ष्वाकुः काश्यपो ब्रह्मा गौतमो नाभिजोऽग्रजः ॥ धनञ्जय नाम माला, ११५, पृ० ५८ सन्मतिमहती:रो महावीरोऽन्त्यकाश्यपः । नाथान्वयो वर्षमानो यत्तीर्थमिह साम्प्रतम् ।। ३. जंबुद्दीवपण्णत्ती, २१६६ ४. वही, ३१२१२, २२२ ५. आवश्यक चूणि, पृ० २२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy