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________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती आरभडं भसोलं, अपेगइया च उत्विहं अभिणयं अभिणेति, तं जहा- दिलैंतियं पाडियंतियं' सामण्णओविणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं', अप्पेगइया बत्तीस इविहं दिव्वं णट्टविहि उवदंसेंति, अप्पेगइया उप्पयनिवयं निवय उप्पयं" संकुचियपसारियं जाव भंतसंभंतं णाम दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति, 'अप्पेगइया पीणेति, एवं बुक्कारेंति' तंडवेंति लासेंति अप्फोडेंति वग्गति सीहणायं णदंति, अप्पेगइया सब्वाई करेंति, अप्पेगइया ह्यहेसियं", एवं हत्थिगुलगुलाइय रघणघणाइयं, अप्पेगइया तिण्णिवि, अप्पेगइया उच्छोलेंति", अप्पेगइया पच्छोलेंति,', अप्पेगइया तिवई छिदंति, 'अप्पेगइया तिण्णिवि' २, अप्पेगइया पायदद्दरयं" करेंति, अप्पेगइया भूमिच वेडं दलयंति, अप्पेगइया मया-महया सद्देणं रावेंति, एवं संजोगा विभासियव्वा, अप्पेगइया हक्कारेंति, एवं पूक्कारेंति थक्कारेंति५ ओवयंति उपयंति परिवयंति, जलंति तवंति पतवंति" गज्जति विज्जुयायंति वासंति, अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति, एवं देवकहकहगं" करेंति, अप्पेगइया दुहदुहगं" करेंति, अप्पेगइया विकियभूयाई रूवाई विउव्वित्ता पणच्चंति, एवमाइ विभासेज्जा जहा विजयस्स जाव सव्वओ समंता आधावेंति परिधावेंति ॥ ५८. तए णं से अच्चुइंदे सपरिवारे सामि तेणं महया-गया' अभिसे एणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं° मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं बद्धावेइ, वद्धावेत्ता ताहि इटाहि3 कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहि सिव्वाहि धण्णाहिं मंगल्लाहि सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं वग्गूहिं॰ जयजयसई १. पडियंतियं (क); प्रातिश्रुतिकं (पुवृ,शाव); ६. गुलगुलाइयं (अ,क,ख,प,ब,स)। प्रतिश्रुतिकं (हीव); द्रष्टव्यं ठाणं ४१६३७ १०. उच्छोलंति (क,ख); उच्छलेंति (त्रि); सूत्रं तत्पादटिप्पणं च। उच्छलंति (हीवृ पवृपा)। २. सामंतीकतियं (अ,नि,ब); सामंतोवाइयं ११. पच्छोलंति (क,ख); प्रोच्छलंति (हीबू,पुवृपा)। (क,प,स); सामंतोकंतियं (ख); सामण्ण- १२. x (अ,क,ख,त्रि,प.व.स,शाव,हीवृ) । ओविणिवाइयं (ठाणं ४।६३७ राय० सू० १३. ददरं (अ,क,ख,त्रि,ब,स, आवश्यकणि ११७,२८१. जी० ३१४४७ । पृ० १४८)। ३. लोगमज्झावसियं (अ,क,ख,प,ब,स); लोग- १४. बुक्कारेंति (स,पुव) । मज्झावसाणियं (गय० सू० ११७,२८१. जी० १५. बक्कारेंति (आवश्यकचूणि पृ १४८) । ३:४४७) : १६. x (अ,क,ख,त्रि,ब)। ४. उप्पयणिक्यप्पवत्तं (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुव,ही। १७. विज्जुतापयंती (अ,ख,ब); विज्जुयंति (आव५. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पु,हीव) : रायपसेण इ. श्यकचूणि पृ० १४८) । यसुत्ते (१११); जीवाजीवाभिगमे (३।४४७) १८. देवकुहुकुहगं (अ,व) । च निवाय-उपाय' इति पाठो विद्यते । १६. देबदुदुचुंग (अ); देवदुदुनुंग (ब)। ६. बक्कारेंति (अ क,ख,ब)। २०. जी० ३१४४७ । ७. अप्पेगइया तंडवेंति अप्पेगइया लासेंति अप्पेग- २१. महया जाव (अत्रि,ब)। इया पीणेति एवं बुक्कारेति (प,शावृ)। २२. सं० पा०-करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए। ८. हतहिसियं (अ,ब)। २३. सं० पा०-इट्ठाहिं जाव जयजयस इं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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