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________________ २५ ४८६ हैं । लिपि सं. १५७५ । प्रति सुन्दर लिखी हुई है। ( शावृ) तपागच्छीय होरविजयसूरि परशिष्य शान्त्याचार्य विरचित वृत्ति (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। लिपि सं. १५५१ ( शावृपा ) शान्त्याचार्य द्वारा गृहीत पाठान्तर सूरपण्णत्ती प्रति परिचय (क) सूरपण्णत्ती मूल यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदाबाद' की है। इसकी क्रमांक डा. २ ५७ है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई १२ ।। x ५ इंच है । इसकी पत्र संख्या ६२ है । प्रथम पत्र नहीं है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्ति व प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ७० तक अक्षर हैं। प्रति सुन्दर व सुवाच्य है। प्रति के बीच में हरी व लाल स्याही से चित्र चित्रण परन्तु प्रति प्राचीन है लगभग १७ वीं शताब्दी की होनी श्लोक प्राकृत में लिखे हुए हैं । किया हुआ है । लिपि संवत् नहीं दिया है । चाहिए। प्रति के अन्त में प्रशस्ति के २५ (ग) सूरपण्णत्ती मूल नंबर ६० (हस्तलिखित ) यह प्रति भी पूर्व उल्लिखित 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ८७ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १० X ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां हैं । प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३३ से ४१ तक है । प्रति की लिपि सुन्दर है पर अशुद्धि बहुल प्रति है । लिपि सं. १५७० ॥ (घ) सूरपण्णसी मूल नम्बर ६०७ ( हस्तलिखित ) यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ६६ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १० x ४ इंच है । प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां है। प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३४ से ४२ तक हैं । प्रति की लिपि सुंदर पर अशुद्धि बहुल है । लिपि सं. १६७३ है । उपर्युक्त तीनों प्रतियों के बीच में बावड़ी है । ( सूवृ) सूरपण्णत्तो टोका नं. ४८ यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, 'अहमदावाद' की है। इसकी लम्बाई चौडाई १२।१ x ५ इंच है। पत्र संख्या २२४ है । प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४४-६० अक्षर हैं । प्रति सुन्दर व स्पष्ट लिखी हुई है। लिपि संम्वत् १५७४ है । चन्द्रप्रज्ञप्ति प्रति-परिचय (क) चंदपण्णत्ती मूल नं. ६०० ( हस्तलिखित ) यह प्रति भी लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ६८ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १० x ४ । इंच है। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ४१ तक अक्षर है । यह प्रति भी सुन्दर है पर अशुद्धि बहुल है। इसमें पत्र के बीच में बावडी है । लिपि संवत् १५७० है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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