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________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती महामहिमाओ करेंति, करेत्ता जेणेव साइं-साइं विमाणाई जेणेव साइ-साइं भवणाई जेणेव साओ-साओ सभाओ सुहम्माओ जेणेव सगा-सगा माणवगा चेइयखंभा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु जिण-सकहाओ पक्खिवंति, पविखवित्ता अग्गेहि वरेहि मल्लेहि य गंधेहि य अच्चेति, अच्चेत्ता विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति ।। १२१. तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहि अणंतेहिं गंधपज्जवेहि अगंतेहिं रसपज्जवेंहि अणंतेहिं फासपज्जवेहिं अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणंतेहि संठाणपज्जवेहिं अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहि आउपज्जवेहि अणंतेहि गरुयलहुयपज्जवेहिं अणतेहिं अगस्यलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं उट्ठाण कम्म-बलवीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अणंतगुणपरिहाणीए° परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमसुसमाणामं समा काले पडिज्जिसु समणाउसो !" १२२. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! वहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्ख रेइ वा जावणाणाविहपंचवणेहि मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा- कत्तिमेहिं चेव अकत्तिमेहिं चेव ॥ १२३. तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसिं मणुयाणं छविहे संघयणे, छबिहे संठाणे, बहूई धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं, जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडि आउयं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी •अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति' 'बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंत करेंति ।। १२४. तीसे णं समाए [भरहे वासे] तओ वंसा समुप्पज्जित्था, तं जहा- अरहंतवंसे चक्कवट्टिवसे दसारवंसे ।। १२५. तीसे गं समाए [भरहे वासे] तेवीसं तित्थक रा, एक्का रस चक्कवट्टी, णव बलदेवा, णव वासु देवा समुप्पज्जित्था ।। १२६. तीसे णं समाए [भरहे वासे] एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए यायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए काले वीइक्कते अणतेहिं वण्णपज्जवेहि अणंतेहि गंधपज्जवेहि अणतेहि रसपज्जवेहि अणतेहिं फासपज्जवेहि अणतेहिं संघयणपज्जवेहि अणतेहि संठाणपज्जवेहि अणतेहि उच्चत्तपज्जवेहि अणतेहिं आउपज्जवेहि अणंतेहि गरुयलयपज्जवेहिं अणतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं उठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहि अणंतगुण परिहाणोए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमा णाम समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो !" १. सपा०-वणपज्जयहि तहव जाव अणतेहि । उढाणकम्म जाव परिहायमाणे। २. जी. ३१२७७ ! २. पुन्वकोडी (अत्रि,प,ब)। ४. सं. पा.-णिरयगामी जाव देवगामी। ५. सं० पा–सिज्मति जाव सव्वदुक्खाणमंतं । ६. सं० पा०-वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव परिहाणीए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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