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________________ थोब दगपासायय ta [स्तक ] ओ० २८, १७१. जी० ११४३; २४६६ से ७३,६५,६६,१३४ से १३८, १४१ से १४६; ३।५६७.६४१, १०३७,११३८, ४.१६ से २३,२५: ५।१८ से २०,२५ से २७, ३१ से ३६,५२,५६,६०; ६११२; ७१२०,२२, २३, ८५, ६५ से ७,१४,१७,२०,२७ से २६, _३५,३७,५५,६१,६२,६६,७४,८७,६४,१००, १०८,११२,१२०,१३०, १४०, १४७, १५५, १५८, १६६, १६६, १८१,१८४, १६६,२०८, २२०,२३१,२५० से २५३,२५५, २६६,२८६ से २६३ थोवतरक | स्तोकतरक ] जी० ३११०१,११४ थोक्तरग [ स्तोकतरक ] जी० ३।६६, ११३ द भास [ कावभास ] जी० ३।७३५, ७४०, ७४१, दंड | दण्ड | ओ० १२,६४, १७४. २० १०,१२,१८, २२,५१,६५,१५६,१६०, २५६, २७६,२६२, ६६४,६७५,७५५,७६०,७६१,७६७,७६८, ७७६,७७७. जी० ३।११७, २६०, ३३२,३३३, ४१७,४४५,४५७,५६२,५८६ वडणायक | दण्डनायक । ओ० १८ aster [ दण्डनायक ] रा० ७५४,७५६,७६२, ७६४ isits [ दण्डनीति | रा० ७६७ दंडनायग | ओ० ६३ [ दण्डनायक ] दंडपाणि | दण्डपाणि] रा० ६६४ दंडय | दण्डक ] रा० ७५५ दंड लक्खण | दण्डलक्षण | को० १४६. रा० ८०६ दंडपुच्छी [दे० दण्डसंपुच्छणी, दण्डसम्पुसनी ] रा० १२ दंड | दण्डिन् | ओ० ६४ दंत | दन्त | ओ० १६.२५,४७, ६४. रा० २५४, ७६०, ७६१- जी० ३१४१५,५६६ दंत [ दन्त ] ओ० १६४ दंत [पग] ] [ दन्तपात्र ] ओ० १०५,१२८ Jain Education International ६४६ दंत [बंध ] [ दन्तबन्धन ] ओ० १०६,१२६ दंतमाल [ दन्तमाल ] जी० ३,५८२ दंतवेदणा [ दन्तवेदना ] जी० ३।६२८ दंतुक्खलिय [ दन्तोलूखलिक ] ओ०६४ वंस [ दंश ] ओ० ८६, ११७. ० ७६६. जी० ३।६२४,६३१।३ सण [ दर्शन ] ओ० १५, १६ मे २१,४६,५१ से ५४,६४,१४३, १५३, १६५,१६६, १८३, १८४. रा०८,५०,७०,१३३,२६२,६८६,६८७.६८६, ७१३, ७३८, ७६८,७७१,८१४. जी० १११४, ६, १०१,११६, १२८, १३३,१३६; ३।३०३, ४५७, ११२२ विजय [ दर्शन विनय ] ओ० ४० सण संपण्ण [ दर्शनसम्पन्न ] ० २५. रा० ६८६ सणोवलंभ [ दर्शनोपलम्भ ] रा० ७६८ दक्ख [ दक्ष ] ओ० ६३. ० १२,७५८,७५६, ७६५, ७६६,७७० जी० ३।११८ दक्खिण [दक्षिण ] जी० ३१५६०, ५६६, ६३६,६७३, ७४०, ७४१ दक्खिकूल [दक्षिण कूलग] ओ० ६४ after earn [दक्षिणाश्चात्य ] जी० ३१६८७ दक्खिणपुरत्यिम [दक्षिणपौरस्त्य ] जी० ३१६८६ affee [ दाक्षिणात्य ] जी० ३०४८६ दग [दक ] रा० १२. जी० ३।७४१ एक्कारसम [ कैकादश ] ओ० १३ दगलसग [ दककलशक ] रा० १२ कुंभग [ दककुम्भक ] रा० १२ anasu | दतृतीय ] ओ० ९३ गालग [ कस्थालक ] रा० १२ दगधारा [दकधारा ] रा० २९३ से २६६, ३००, _३०५,३१२.३५१,३५५, ५६४. जी० ३।४५७ से ४६२,४६५,४७०, ४७७,५१७,५२०,५४७, ૪ दगपासाग | दकप्रासादक ] रा० १८० जी० ३।२६२ दपासा [दकप्रासादक ] रा० १८१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003570
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages639
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size13 MB
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