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________________ ७४४ if | संस्थित | ओ० १,१३,१६,५०,८२, १७०, १०४. २०३२, ५२, ५६, १२७, १३२, १३३, १८५,२३१,२४७. जी० १।१८,६४,६५,६७, ७४,७७,७६, ८६,६६,११०,११६, १३०,१३६; ३१३०,५०,७८, २५७, २५६, २६७, ३०३,३०७, ३७२,३६३,४०१,५६४, ५०६ से ५६८, ६०४, ६८९, ७२३, ७२६,७३६,७९३,८३८२,१५, १५, १८, १०७१ संड [ षण्ड ] ० २२. रा० ७७७,७७८,७८८ संडास [ मंदंशक] जी० ३१११८,११६ संडेय [ षण्डय ] आं० १ संनिखित्त | सन्निक्षिप्त ] जी० ३१४१५ संत [ सत् ] ओ० २३. रा० ६६५. जी० ३०६०८ संत | श्रान्त] ओ० ६३. २० ७६५ संताण | सन्तान | ओ० ४६ संति [ सत् ] जी० १२७२/३ / संघर [ सं + स्तृ] – संथरइ. रा० ७६६. - संभरति. ओ० ११७ संथरित्ता | सस्तृत्व | ओ० ११७ संधार [संस्तार ] रा० ६६८, ७०४,७०६, ७५२, ७८६ संधारण | संस्तारक ] ओ० ३७,१२० रा० ७११ i संभार | संस्तारक ] ओ० १६२,१५०. ० ७१३, ७७६ √ संथुण [ सं + स्तु ] – संथणइ रा० २९२. जी० ३१४५७ संधुणित्ता [ संस्तुत्य ] रा० २९२. जी० ३।४५७ संबद्ध [ सन्दष्ट ] जी० ३।३२३ संमाणिया [ स्यन्दमानिका ] ओ० १,५२, १००, १२३. रा० ६८७ से ६८६. जी० ३।२७६, ५८१,५८५,६१७ संदमाणी | स्यन्दमानी ] रा० १७३ संदभाणीया | स्यन्दमानिका ] जी० ३२२८५ संदिट्ठ [ सन्दिष्ट ] रा० १५० / संदिस [ सं -+-दिश् ] -संदिसंतु स० ७२ संधि [ सन्धि ] ओ० १६. रा० १६,३७,१३०, Jain Education International संठिय-संपरिविखत्त १५६,१७५,१६०,२४५,६६४. जी० ३१२६४, २८७, ३००, ३११३३२,४०७, ५६२,५६६, ५६७ संधिवाल | सन्धिपाल ] ओ० १८,६३. १० ७५४, ७५६,७६२,७६४ संक्a | मं+ धुक्षू ] --- संधुक्खेद. रा० ७६५ निकास | सन्निकाश | जी० ३१३०३ संनिविखत | सक्षिप्त | जी० ३२८०२, ४१०, ४१८, ४१६,४२६, ४३२, ४३५, ४४२ संनिखित | सन्निक्षिप्त | रा० २४०, २४६, २५४, २५३.२५८, २६६,२६८, २७६ संनिवि | सन्निविष्ट | जी० ३ २८५,३७२,३७४, ६४६,६७३,६३४,८८४,८८७ संपत [ सम्प्रयुक्त ] ओ० १४,२१,४३,६४, १४१. रा० ६७१,७१०,७७४, ७६६ संपओग | प्रयोग] ओ० ४३. रा० ६७१ संपवखाल | सम्प्रक्षाल | ओ० ६४ संपगाढ | सम्प्रगाढ | जी० ३ १२६१७ संपट्टिय | सम्प्रस्थित ] मो० ६४, ११५ संपणाइय सम्प्रनादिन | रा० ३२,२०६,२११. जी० ३।३७२, ६४६ संपण | सम्पन्न ] जी० ३५६८ संपत्त | सम्प्राप्त ! अ० २१,५२, ५४, ११७,१४४. रा०८, २९२,६८७, ६-६,७१३, ७१४,७६६, ८०२. जी० ३१४५७ संपत्ति | सम्पत्ति संप्राप्ति ] जी० ३।१११६ संपत्थिय | सम्प्रस्थित ] रा० ४१ से ५४,७७४ संपन्न [ सम्पन्न ] जी० ३२७६५,८४१ √ संपमज्ज | संप्र + मृज् ] संपमज्जइ. ओ० ५६. -- संपमज्जेज्जा. रा० १२ संपमज्जेत्ता [ सम्प्रमृज्य ] ओ० ५६ संपरिक्खित | सम्परिक्षिप्त ] ओ० ३,६,११. रा० १२७, २०१२६३. जी० ३१२१७,२६०, २६२, २६५, ३१३, ३५२, ३६२,३६८ से ३७१,३८८, ३६०,६३६, ६५२,६५८, ६६८, ६७८, ६७६, ६८१,६८९, ७०४,७०६,७३६, ७५४,७९६. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003568
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Ovaiyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages412
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size8 MB
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