SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छट्टु अज्झणं (पढमं संवरदारं ) श्रहिंसा-माहत्य-पदं ६. एसा भगवती ग्रहिंसा, जा सा -- अपरिमियनाणदंसणधरेहिं सीलगुण-विषय-तव-संजमनायकेहि तित्थंकरेहिं सव्वजगवच्छलेहि तिलोग महिएहि जिणच देहि सुट्ठदिट्ठा, मोहिजिणेहि विष्णाया, उज्जुमतीहि विदिट्ठा, विपुलमतीहि विदिता, पुत्रधरेहिं अधीता, वीहि पतिष्णा । आभिणिवोहियनागीहि सुयनाणीहिं मणपज्जवनाणीहि केवलनाणीहिं आमोस हिपत्तेहि खेलोसहिपतेहि जल्लोसहिपत्तहि विप्पोसहिपतेहि सव्बोसहिपत्तेहि daबुद्धीहि कोबुद्धीहिं पदाणुसारीहि संभिण्णसोतेहिं सुयधरेहिं मणबलिए हिं afraलिएहिं कायवलिएहि नाणवलिएहि दंसणवलिएहिं चरितवलिएहि खीरासह महासवेहिं सप्पियासवेहि अक्खीणमहाणसिएहि चारणेहिं विज्जाहरेहि चउत्थभत्तिएहि 'छट्टभत्तिएहि द्रुमभत्तिएहि एवं दसम दुवालसचोट्स सोलस - श्रद्धमास मास दोमास चउमास-पंचमास" - छम्मासभत्तिएहिं उक्खित्तचरएहिं निक्खित्तचरएहिं अंत चरएहिं पंतचरएहिं लूहचरएहिं समुदाणचरएहि अण्णइलाएहि मोणच रहि संसकप्पिएहि तज्जायस सदृकप्पिएहि उवनिहिएहिं सुद्धेस णिएहि संखादत्तिहि दिट्ठलाभिएहि श्रदिट्ठलाभिएहि पुलाभिएहि विलिएहि पुरिमडिएहि एक्कासणिएहिं निव्वितिएहि भिष्णपिंडवाइएहि परिमियपिंडवाइएहि अंताहारेहि पंताहारेहि रसाहारेहिं विरसाहारेहिं लूहाहारेहिं तुच्छाहारेहिं अंतजीवीहि पंतजीवीहि लूहजीवीहि तुच्छजीवीहि उवसंतजीवहि पसंतजीविहिं विवित्तजीवीहिं अक्खी र महुस पिएहि श्रमज्जमंसासिएहि ठाणाइएहि पडिमट्ठाईहि' ठाणुक्कडिएहि वीरासणिएहि सज्जिएहि डंडाइएहि लगंडसाईहिं एगपासगेहि आयावहि अप्पाजहि प्रणिट्टुभएहि अकडूयएहि aahari-लोमनखेहि सव्वगायपडिक म्मवित्यमुक्केहिं समणुचिण्णा । सुरविदितत्थ काय बुद्धीहि । धीरमतिबुद्धिणो य जे ते ग्रासीविस उग्गतेयकप्पा निच्छय-ववसाय-पज्जत्तकयमतीया णिच्चं सज्झायज्झाण-प्रणुवद्धधम्मज्झाणा पंचमहव्वयचरित्तजुत्ता समिता समिती समितपावा छव्विहजगवच्छला " निच्चमप्पमत्ता, एएहिं " अण्णेहि य जा सा प्रणुपालिया भगवती । १. सव्वजगजीव० (क) 1 २. विविदिता (घ ) | ३. सप्पियासह (ख, ग, घ, च) । ४. एवं जाव (क, ख, ग, घ ) । ५. प्रक्खित्त ० ( क ) 1 ६. पडिमट्टाइएहि (ख, घ, च) । ६८५ Jain Education International ७. ठाणुक्कुडुएहिं ( क ) । ८. समनुपालितेति सम्बन्ध: ( वृ) 1 ६. मिच्छत्तकयमतीया (ख, घ); विणीयपज्जतकयमतीया (वृपा ) | १०. छव्हिजगजीववच्छला ( क ) । ११. एएहिय ( घ च ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003566
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages176
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy