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________________ भगवई माणीनो', एवं गिल्लीनो, थिल्लोप्रो, अट्ट वियडजाणाई वियडजाणपत्र राई, अट्ठ रहे पारिजाणिए, अट्ठ रहे संगामिए, अटु पासे आसपवरे, अटु हत्थी हत्थिप्पवरे, अट्ठ गामे गामप्पवरे दसकुलसाहस्सिएणं गामेणं, अट्ठ दासे दासप्तवरे, एवं दासीयो, एवं किंकरे, एवं कंचुइज्जे, एवं वरिसधरे, एवं महत्तए, अट्ठ सोवण्णिए अोलंबणदीवे, अट्ठ रुप्पामाए प्रोलवणदीवे, अट्ठ सुवण्णरुप्यामाए अोलंबणदीवे, ग्रट सोवण्णिए उक्कंबणदीवे', एवं चेव तिणि वि. अट सोवष्णिा पंजरदीवे, एवं चेव तिणि वि, अट्ट सोवणिए थाले, अट्ठ रुपामए थाले, अट्ठ सुवण्णरुप्पामए थाले, अट्ठ सोवणियाग्रो पत्तीओ' ३, अट्ठ सोवणियाइं थासगाइं३, अट्ट सोणियाई मल्लगाइं३, अट्ट सोवणियानो तलियाओं ३, अट्ठ सोवणियानो कविचियाओं ३, अट्ट सोवण्णिए अवएडा ३, अट्ट सोवणियायो अवयक्कानो'३, अट्ठ सोवण्णिए पायपीढा३, अट्ठ सोवष्णियानो भिसियाओ३, अट्ट सोवणियानो करोडियानो३, अट्ट सोवणिए पल्लंके ३, अट्ठ सोवणियानो पडिसेज्जाओ३, अट्ट हंसासणाई, अट्ठ कोंचासणाई, एवं गरुलासणाई, उन्नयासणाइं, पणयासणाई, दीहासणाई, भद्दासणाई, पक्खासणाई, मगरासणाई, अट्ठ पउमासणाई, अट्ठ दिसासोवत्थियासणाई, अट्ट तेल्ल-समुग्गे, "अट्ठ कोट्ठसमुग्गे, एवं पत्त-चोयग-तगर-एल-हरियाल-हिंगुलय-मणोसिल-अंजण-समुग्गे', अट्ठ सरिसव-समुग्गे, अट्ठ खुज्जाओ जहा ओववाइए जाव' अट्ठ पारिसोरो, अट्ठ छत्ते, अट्ट छत्तधारोनो चेडीमो, अट्ठ चामरायो, अढ चामरधारीयो चेडीयो अट्ठ तालियंटे, अट्ठ तालियंटधारीयो चेडीओ, 'अट्ठ करोडियानो', अट्ठ करोडियाधारीयो चेडीओ, अटु खीरधाईयो", 'अट्ट मज्जणधाईओ, अट्ठ मंडणधाईओ अट्ट खेल्लावणधाईप्रो°, अट्ठ अंकधाईओ, अट्ठ अंगमद्दियानो, अट्ठ उम्मद्दियाओ अट्र पहावियानो, अट्ट पसाहियाओ, अट्ट वाणगपेसीनो, अट्ट चुण्णगपेसीयो", अट्ठ कीडागारीयो", अट्ट दवकारीयो", अट्ठ उवत्थाणियानो, अट्ठ नाडइज्जायो, १. संदमागी (अ); संदमाणियाओ (क, ता, ६. अवपाइए (अ, स}; अवयडा (ता)। ब, म)। ७. अवकाओ (अ, क, ग्ब, ता, म)। २. उक्कपणदीवे (क, ख, ता, ब, स)। ८. सं० पा–जहा रायपोरगइज्जे जाव अटु । ३. 'एवं तिषिण वि' इति पाठस्य सचकमक- ६. ओ० स० ७० भ०६।१४४) मिदं सर्वत्र। १०. x (अ, क, ख, ता, ब, म)। ४. चवलियाओ (ख); चवलियाओ अट्रसो- ११. सं० पा०--बीरधाईओ जाव अट्र । वणियाओ तिलियाओ (ता)। १२. x (ख) ५. कवचियाओ (अ, ख, ता, ब, म); कति- १३. कीलाकरीओ (ता)! वियाओ (क)। १४. उबकारीग्रो (क, ता)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003561
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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