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________________ ४१८ भगवई १२. होज्जा, अहवा एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए होज्जा । एवं जहा रयणप्पभाए उरिमाप्रो पुढवीओ चारियायो तहा सक्करप्पभाए वि उवरिमाप्रो चारियन्वानो जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए होज्जा, अहवा एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे वालुयप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे पंकप्पभाए एगे धमप्पभाए एगे तमाए एगे ग्रसत्तमाए होज्जा ।। पंच भंते ! नेरइया ने रइयप्पवेसणएणं पविसमरणा किं रयणप्पभाए होज्जा ? -पुच्छा । गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा। अहवा एगे रयणप्पभाए चत्तारि सक्करप्पभाए होज्जा जाव अहवा एगे रयणप्पभाए चत्तारि अहेसत्तमाए होज्जा । अहवा दो रयणप्पभाए तिणि सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए तिणि अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा तिण्णि रयणप्पभाए दोणि सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा चत्तारि रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा चत्तारि रयणप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा । अहवा एगे सक्करप्पभाए चत्तारि बालुयप्पभाए होज्जा। एवं जहा रयणप्पभाए समं उवरिमपुढवीयो चारियायो तहा सक्करप्पभाए वि समं चारेयव्वाग्रो जाव अहवा चत्तारि सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमार होज्जा। एवं एक्केक्काए सम चारेयव्वाप्रो जाव अहवा चत्तारि तमाए एगे ग्रहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए तिणि वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए तिषिण अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा अगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए दो वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए एग सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे रयणप्पभाए तिणि सक्करप्पभाए एगे वालयप्पभाए होज्जा. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए तिणि सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा । अहवा दो रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव १. चतुःसंयोगजा भङ्गाः ३५ । २. द्विसंयोगजा भनाः ८४ ! Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003561
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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