SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अटुमं सतं (छट्ठो उद्देसो) ४. से य संपट्ठिए असंपत्ते, अप्पणा य पुवामेव कालं करेज्जा । से णं भंते ! कि पाराहए ? विराहए ? गोयमा ! आराहए, नो विराहए। ५. से य संपट्ठिए संपत्ते, थेरा य अमुहा सिया । से णं भंते ! कि पाराहए ? विराहए ? गोयमा ! आराहए, नो विराहए। ६. से य संपट्ठिए संपत्ते अप्पणा य "अमुहे सिया । से णं भंते ! कि आराहए ? विराहए ? गोयमा ! पाराहए, नो विराहए । ७. से य संपट्टिए संपत्ते, थेरा य कालं करेज्जा। से णं भंते ! कि पाराहए ? विराहए? गोयमा ! पाराहए, नो विराहए। ८. से य संपट्टिए संपत्ते अप्पणा य कालं करेज्जा । से णं भंते कि पाराहए ? विराहए ? गोयमा ! पाराहए, नो विराहए ॥ २५२. निग्गंथेण य वहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खंतेणं अण्णयरे अकि च्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति–इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि –एवं एत्थ वि ते चेव अट्टालावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए। २५३. निरगंथेण य गामाणुगामं दूइज्जमाणेणं अण्णयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवइ-इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि-एवं एत्थ वि ते चेव अट्ठ पालावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए । २५४. निरगंथीए य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठाए अण्णयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तीसे णं एवं भवइ–इहेव ताव अहं एयरस ठाणस्स पालोएमि जाव तवोकम्म पडिवज्जामि ; तो पच्छा पवत्तिणीए अंतियं प्रालोएस्सामि जाव तवोकम्म पडिवज्जिस्सामि । सा य संपट्ठिया असंपत्ता, पवत्तिणी य अमुहा सिया। साणं भंते ! कि आराहिया? विराहिया? गोयमा ! पाराहिया, नो विराहिया। सा य संपट्टिया जहा निग्गंथस्स तिण्णि गमा भणिया एवं निग्गंथीए वि तिण्णि आलावगा भाणियव्वा जाव पाराहिया, नो विराहिया ।। १. सं० पा० एवं संपत्तेण वि चत्तारि आला- २. विचार° (ता, म); वितार (ब) ° ! वगा भाणियब्वा जहेव असंपत्तेणं । ३. पवित्तिरपीए (अ, ता, ब, स)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003561
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy