SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभृति पौत्रादि परिवारपरिवृतया मृपुण्यार्थं श्री ज्ञानभक्तिनिमित्तं श्री स्थानांग सूत्रवृत्तिसहितं लेखयित्वा बिहारितं श्रीखरतरगच्छे वृहतिथीवीकानयरे श्रीजिनहससूरि विजयिराज्ये वा० महिम राजगणीद्राणां शिष्य वा० दयासागगणीवराणां शिष्य वा. ज्ञानमन्दिरगणिदेवतिलकादिपरिवृतानां वाच्यमानं चिरं नंदतु । शुभं वोभोतु श्री चतुर्विध श्री संघाय ॥छ।। श्री रस्तु । (ख) ठाणांग मूलपाठ (हस्तलिखित) घेवर पुस्तकालय सुजानगढ़ से प्राप्त । इसके पत्र १०८ और पृष्ठ २१६ है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां । प्रत्येक पंक्ति में ४५ करीव अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है । प्रति प्रायः शुद्ध तथा स्पष्ट है । लिपि संवत् १६८५ है । गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त (वृत्ति की प्रति)। इसके पत्र २८३ और पृष्ठ ५६६ हैं। इसकी लम्बाई १२ इंच है तथा चौड़ाई ४६ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५८ से ६० तक अक्षर हैं। (घ) ठाणांग (मूलपाठ) यह प्रति लालभाई भाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर (अहमदाबाद) की है। इसके पत्र ६६ तथा पृष्ठ १३२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ तक अक्षर हैं। इसकी लम्बाई १२ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। पत्रों के दोनों ओर कलात्मक वापिका है। अन्त में लिखा है--- संवत् १५१७ वर्षे ठाणांग सूत्रं लेखयित्वा तेषामेव गुरुणामुपकारिता। साधुजनैर्वा चिरं नंदतात् ॥छ। 1100 समवाओ प्रस्तुत सूत्र का पाठ-संशोधन तीन आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर किया गया है। कूल स्थलों में पाठ-संशोधन के लिए अन्य ग्रन्थों का भी उपयोग किया गया है। प्रकीर्ण समवाय (सूत्र २३४) में प्रयुक्त आदर्शों में 'अस्ससेणे' पाठ नहीं है। यह चतुर्थ चक्रवर्ती के पिता का नाम है। इसके बिना अगले नामों की व्यवस्था विसंगत हो जाती है। उल्लिखित सूत्र की संग्रह गाथाओं में पद्मोत्तर नाम अतिरिक्त है। इसे पाठान्तर रूप में स्वीकार किया गया है। आवश्यक नियुक्ति (३९६) में 'अस्ससेणे पाठ उपलब्ध है। उसके आधार पर 'अस्ससेणे' मूल-पाठ के रूप में स्वीकृत किया गया है। प्रकीर्ण समवाय (सूत्र २३०) की संग्रह गाथा में बलदेव वासुदेव के पिता के नाम है। उक्त गाथा में स्थानांग (९।१६) तथा आवश्यक नियुक्ति (४११)के आधार पर संशोधन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003557
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages381
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy