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________________ भगवई तेसि णं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! दससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढी इ वा जुई इ वा जसे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स पाराहगा? हंता अस्थि ॥ अम्मड-चरिया-पदं ११०. बहुजणे णं भंते ! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए ''पाहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ। से कहमेयं भंते ? एवं खलु गोयमा ! जं णं से बहुजणे अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ, सच्चे णं एसमढे अहं पि णं गोयमा ! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पण्णवेमि एवं परूवेमि-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ ।। १११. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-अम्मडे परिवायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ ? गोयमा ! अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए पगइउवसंतयाए पगइपतणुकोहमाणमायालोयाए मिउमद्दवसंपण्णयाए अल्लीणयाए विणीययाए छटुंछद्रुण अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाम्रो पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहस्स पायावणभूमीए पायावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहि अज्झवसाणेहि लेसाहिं विसुज्झमाणीहि अण्णया कयाइ तदावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए वे उव्वियलद्धीए प्रोहिनाणलद्धी समुप्पण्णा। तए णं से अम्मडे परिव्वायए तीए वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए प्रोहिनाणलद्धीए समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेउं कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ । से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ ।। १. सं० पा०-एवं जहा ओववाइए अम्मडस्स वत्तव्वया जाव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003552
Book TitleAngsuttani Part 02 - Bhagavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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