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________________ सोलहवां अध्ययन : ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान] [265 (5) उनके कूजन, रोदन, गीत तथा हास्य (हंसी-मजाक) को (दीवार आदि की प्रोट में छिप कर सुनना), (6) (पूर्वावस्था में) भुक्त भोग तथा सहावस्थान का स्मरण-(चिन्तन) करना, (7) प्रणीत पान-भोजन और (8) अतिमात्रा में पान-भोजन / (9) स्त्रियों के लिए इष्ट शरीर की विभूषा करना और (10) दुर्जय काम-भोग ; ये दस आत्मगवेषक मनुष्य के लिए तालपुट विष के समान हैं। विवेचन-फलितार्थ-प्रस्तुत तीन गाथाओं में ब्रह्मचर्य-समाधि-स्थान की उन्हीं नौ गुप्तियों के भंग को तालपुट विष के रूप में प्रस्तुत किया गया है / संस्तव : प्रासंगिक अर्थ-स्त्रियों का परिचय, एक ही श्रासन पर बैठने या साथ-साथ भोजनादि सेवन से होता है। काम और भोग-शास्त्रानुसार काम शब्द, शब्द एवं रूप का वाचक है और भोग शब्द हैरस, गन्ध और स्पर्श का वाचक / विसं तालउडं जहा-तालपूट विष शीघ्रमारक होता है। उसे प्रोठ पर रखते ही, ताल या ताली बजाने जितने समय में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है / इसी प्रकार ब्रह्मचर्यसमाधि में बाधक ये पूर्वोक्त 10 बातें ब्रह्मचारी साधक के संयम की शीघ्र विघातक हैं।' ब्रह्मचर्य-समाधिमान के लिए कर्तव्यप्रेरणा 14. दुज्जए कामभोगे य निच्चसो परिवज्जए / संकट्ठाणाणि सव्वाणि वज्जेज्जा पणिहाणवं // [14] प्रणिधानवान् (स्वस्थ या स्थिर चित्त वाला) मुनि दुर्जय कामभोगों का सदैव परित्याग करे और (ब्रह्मचर्य के पूर्वोक्त) सभी शंकास्थानों (भयस्थलों) से दूर रहे। 15. धम्मारामे चरे भिक्खू धिइमं धम्मसारही। धम्मारामरए दन्ते बम्भचेर-समाहिए। [15] भिक्षु धतिमान (परीषह और उपसर्गों को सहने में सक्षम), धर्मरथ का सारथि, धर्म (श्रुत-चारित्र रूप धर्म) के उद्यान में रत, दान्त तथा ब्रह्मचर्य में सुसमाहित होकर धर्म के आराम (बाग) में विचरण करे। विवेचन--संकट्ठाणाणि सव्वाणि-पूर्व गाथात्रय में उक्त दसों ही शंकास्थानों का परित्याग करे, यह ब्रह्मचर्यरत साधु-साध्वी के लिए भगवान् की आज्ञारूप चेतावनी है। इस पर न चलने से आज्ञा-भंग अनवस्था मिथ्यात्व एवं विराधना के दोष की सम्भावना है। 15 वी गाथा का द्वितीय अर्थ-ब्रह्मचर्यसमाधि के लिए भिक्षु धृतिमान्, धर्मसारथि, 1. बृहद्वृत्ति, पत्र 429 2. बृहदवृत्ति, पत्र 430 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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