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________________ 146] [उत्तराध्ययनसूत्र घर बनाऊँगा / अतः समर्थता और प्रेक्षावत्ता में कहाँ क्षति है ? क्योंकि मैं तो अपने घर बनाने की तैयारी में लगा हुआ हूँ और स्वाश्रयी शाश्वत गृह बनाने में प्रवृत्त हूँ ! अतः प्रेक्षावान् हेतु वास्तव में सिद्धसाधन है। 'मोक्षस्थान ही मेरे लिए गन्तव्यस्थान है, क्योंकि वही शाश्वत सुखास्पद है' यह प्रतिज्ञा एवं हेतु वाक्य है / जो ऐसा नहीं होता वह स्थान मुमुक्षु के लिए गन्तव्य नहीं होता, जैसे नरकनिगोदादि स्थान; यह व्यतिरेक उदाहरण है।' वद्धमाणगिहाणि वर्द्धमानगृह-वास्तुशास्त्र में कथित अनेकविध गृह / मत्स्यपुराण के मतानुसार वर्द्ध मानगृह वह है, जिसमें दक्षिण की ओर द्वार न हो। वाल्मीकि रामायण में भी ऐसा ही बताया गया है और उसे 'धनप्रद' कहा है / बालग्गपोइयानो बालाप्रपोतिका देशी शब्द है, अर्थ है- बलभी, अर्थात्-चन्द्रशाला, अथवा तालाब में निर्मित लघु प्रासाद / 3 सासयं-दो रूप, दो अर्थ-(१) स्वाश्रय-स्व यानी आत्मा का आश्रय घर, अथवा (2) शाश्वत-नित्य (प्रसंगानुसार) गृह / / पंचम प्रश्नोत्तर : चोर-डाकुओं से नगररक्षा करने के सम्बन्ध में 27. एयमढं निसामित्ता हेउकारण-धोइयो। तओ नमि रायरिसि देविन्दो हणमब्बवी--11 [27] (अनन्तरोक्त नमि राजर्षि के) इस वचन को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्र ने नमि राजषि से इस प्रकार कहा 28. 'आमोसे लोमहारे य गंठिभेए य तक्करे / नगरस्स खेमं काऊणं तमो गच्छसि खत्तिया ! // ' [28] हे क्षत्रिय ! पहले ग्राप लुटेरों को, प्राणघातक डाकुओं, गांठ काटने वालों (गिरहकटों) और तस्करों (सदा चोरी करने वालों) का दमन करके, नगर का क्षेम (अमन-चैन) करके फिर (दीक्षा लेकर) जाना। 29. एयमढं निसामित्ता हेउकारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी-॥ [26] इस पूर्वोक्त बात को सुन कर हेतु और कारणों से प्रेरित हुए नमि राजर्षि ने देवेन्द्र को यों कहा 1. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र 311 (ख) उत्तरा. प्रियदर्शिनी टीका, भा. 2, पृ. 409 2. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र 311 (ख) 'दक्षिणद्वारहीनं तु वर्धमानमुदाहृतम्,' --मत्स्यपुराण, पृ. 254 (ग) 'दक्षिणद्वाररहित वर्धमानं धनप्रदम् / वाल्मीकि रामायण 58 3. (क) उत्त. चूणि, पृ. 183 (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र 312 4. वही, पत्र 312 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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