SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठाध्ययन : प्रत्याख्यान] [111 (10) अद्धाप्रत्याख्यान-मुहूर्त, पौरुषी आदि काल की अवधि के साथ किया जाने वाला प्रत्याख्यान / 1. नमस्कारसहित-सूत्र उग्गए सूरे नमोक्कारसहियं पच्चवखामि चउव्विहं पि प्राहारं-असणं, पाणं, खाइम, साइमं / अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, वोसिरामि / भावार्थ-सूर्य उदय होने पर नमस्कारसहित-दो घड़ी दिन चढ़े तक का (नोकारसी का) प्रत्याख्यान ग्रहण करता हूँ और अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम-इन चारों ही प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ। प्रस्तुत प्रत्याख्यान में दो आगार अर्थात् अपवाद हैं--अनाभोग—अत्यन्त विस्मृति और सहसाकार-शीघ्रता (अचानक)। इन दो अागारों के सिवा चारों आहार वोसिराता हूँ-त्याग करता हूँ। विवेचन-नमस्कारसहित अर्थात् सूर्योदय से लेकर दो घड़ी दिन चढ़े तक यानी मुहूर्त भर के लिये नमस्कार पढ़े बिना आहार ग्रहण नहीं करना / साधारण बोलचाल की भाषा में इसे 'नवकारसी' (नोकारसी) कहते हैं। चार प्रकार का आहार (1) प्रशन—इसमें रोटी, चावल आदि सभी प्रकार का भोजन आ जाता है। (2) पान-दूध, पानी प्रादि सभी पीने योग्य चीजें पान में समाविष्ट हैं / किन्तु परम्परा के अनुसार यहाँ पान से केवल जल ही ग्रहण किया जाता है / 3. खादिम–मेवा, फल आदि / कुछ प्राचार्य मिष्टान्न को अशन में ग्रहण करते हैं और कुछ खादिम में। 4. स्वादिम-लौंग, इलायची, सुपारी आदि मुखवास को स्वादिम माना है। इस आहार में उदरपूर्ति की दृष्टि न होकर मुख्यतया मुख के स्वाद की दृष्टि होती है / संस्कृत भाषा का 'आकार' ही प्राकृत भाषा में 'आगार' कहलाता है। आकार का अर्थअपवाद माना जाता है / अपवाद का अर्थ है-यदि किसी विशेष स्थिति में त्याग की हुई वस्तु सेवन कर ली जाए या करनी पड़ जाए तो प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है। अतएव व्रत अंगीकार करते समय आवश्यक आगार रखना चाहिये / ऐसा न करने पर व्रत भंग की संभावना रहती है 'प्राक्रियते विधीयते प्रत्याख्यानभंगपरिहारार्थमित्याकार:'--'प्रत्याख्यानं च अपवादरूपाकारसहितं कर्तव्यम्, अन्यथा तु भंगः स्यात् / ' -आचार्य हेमचन्द्र (योगशास्त्र) अनाभोग और सहसाकार दोनों ही आगारों के सम्बन्ध में यह बात है कि जब तक पता न चले, तब तक तो व्रत भंग नहीं होता। परन्तु पता चल जाने के बाद भी मुख में ग्रास ले लिया हो और उसे थके नहीं एवं आगे खाना बन्द नहीं करे तो व्रत भंग हो जाता है। अतः साधक का कर्तव्य है कि जैसे ही पता चले, भोजन बन्द कर दे और जो कुछ मुख में हो, वह सब यतना के साथ थूक दे। ऐसा न करे तो व्रत भंग हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003496
Book TitleAgam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy