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________________ [आवश्यकसूत्र कर्मों की निर्जरा के लिए जो शारीरिक तथा मानसिक कष्ट साधु को सहन करने चाहिये, वे परिषह हैं, क्योंकि साधु-जीवन सुखशीलता का जीवन नहीं है। वह आरामतलबी से विमुख होकर आत्मा की पूर्ण निर्मलता के लिए जूझने का जीवन है। श्री समवायांग एवं उत्तराध्ययन में 22 परिषहों का वर्णन है। इन पर विजय पाना-समभाव से सहना चाहिए / विवरण इस प्रकार है 1. क्षुधा--भूख का कष्ट सहन करना। 2. पिपासा-निर्दोष पानी नहीं मिलने पर प्यास का कष्ट सहन करना। 3. शीत—अल्प वस्त्रों के कारण भयंकर ठंड का कष्ट सहना। 4. उष्ण-गर्मी का कष्ट सहना / 5. दंशमशक-डांस-मच्छर-खंटमल आदि जंतुओं का कष्ट सहना / 6. अचेल-वस्त्रों के नहीं मिलने पर होने वाला कष्ट सहना / 7. अरति—कठिनाइयों से घबराकर संयम के प्रति होने वाली अरुचि का निवारण करना / 8. स्त्रीपरिषह-नारीजन्य प्रलोभन पर विजय पाना / यह अनुकल परिषह है। 6. चर्यापरिषह-विहार-यात्रा में होने वाला गमनादि कष्ट सहना / 10. निषद्या-स्वाध्याय-भूमि आदि में होने वाले उपद्रव को सहन करना। 11. शय्या अनुकूल मकान नहीं मिलने पर होने वाले कष्ट को सहना / 12. आक्रोश-कोई गाली दे, धमकाये या अपमानित करे तो समभाव रखना। 13. वध-समभाव से लकड़ी आदि की मार सहना। 14. याचना-मांगने पर कोई तिरस्कार कर दे तो भी क्षुब्ध न होना / 15. अलाभ-याचना करने पर भी वस्तु नहीं मिले तो खेद न करना। 16. रोग-रोग उत्पन्न होने पर धैर्यपूर्वक सहन करना। 17. तृणस्पर्श---कांटा आदि चुभने पर या तृण पर सोने से होने वाले कष्ट को सहना / 18. जल्ल—शारीरिक मल का परिषह सहन करना / 16. सत्कार-पूजाप्रतिष्ठा प्राप्त होने पर अहंकार न करना, न प्राप्त होने पर खेद न करना। 20. प्रज्ञा-बुद्धि का गर्व नहीं करना। 21. अज्ञान बुद्धिहीनता का दुःख समभाव से सहन करना / 22. दर्शन–दर्शन अर्थात् सम्यक्त्व को भ्रष्ट करने वाले मिथ्या मतों के मोहक वातावरण से प्रभावित न होना। सूत्रकृतांगसूत्र के 23 अध्ययन प्रथम श्रुतस्कन्ध के पूर्वोक्त सोलह अध्ययन एवं द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन-(१७) पुण्डरीक, (18) क्रियास्थान, (19) आहारपरिज्ञा, (20) प्रत्याख्यानक्रिया, (21) प्राचारश्रुत, (12) पार्द्र कुमार, (23) नालन्दीय, मिलकर तेईस अध्ययन होते हैं / उक्त तेईस अध्ययनों के कथनानुसार संयमी जीवन न होना, अतिचार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003496
Book TitleAgam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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