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________________ चतुर्ष अध्ययन : प्रतिक्रमण] [57 इच्छा से आये हुए नारकी जीवों को वैक्रिय वायु द्वारा तलवार की धार जैसे तीखे पत्ते गिराकर छिन्न-भिन्न करने वाले / 10. धनुष-धनुष से छेदने वाले। 11. कुम्भ-ऊंटनी आदि के आकार वाली कुभियों में पकाने वाले। 12. बालक-वज्रमय तप्त बालुका में चनों के समान तड़तड़ाहट करते हुए नारकी जीवों को भूनने वाले। 13. वैतरणी अत्यन्त दुर्गन्ध वाली राध-लोहू से भरी हुई एवं तपे हुए जस्ता और कथीर * की उकलती हुई, अत्यन्त क्षार से युक्त उष्ण पानी से भरी हुई वैतरणी नदी की विकुर्वणा करके उसमें नरक के जीवों को डालकर अनेक प्रकार से पीडित करने वाले / 14. खरस्वर तीखे वज्रमय कांटे वाले ऊंचे-ऊंचे शाल्मली वृक्षों पर चढ़ाकर चिल्लाते हुए नारको जीवों को खींचने वाले, मस्तक पर करोत रखकर चीरने बाले / 15. महाघोष–अत्यन्त वेदना के डर से मृगों की तरह इधर-उधर भागते हुए नारक जीवों को बाड़े में पशुओं की तरह घोर-गर्जना करके रोकने वाले / इनके द्वारा होने वाले पाप की अनुमोदना आदि से जो अतिचार लगा हो, तो मैं उससे निवृत्त होता हूँ। गाथा षोडशक सूत्रकृताङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययन इस प्रकार हैं---- 1. स्वसमय-परसमय, 2. वैतालीय, 3. उपसर्ग-परिज्ञा, 4. स्त्री-परिज्ञा, 5. नरकविभक्ति, 6. वोर-स्तुति, 7. कुशील-परिभाषा, 8. वीर्य, 6. धर्म, 10. समाधि, 11. मोक्षमार्ग, 12. समवसरण, 13. यथातथ्य, 14. ग्रन्थ, 15. आदानीय, 16. गाथा। इनकी श्रद्धा या प्ररूपणा में लगे अतिचारों का प्रतिक्रमण करता हूँ। सत्तरह असंयम 1-6. पृथिवीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, और वनस्पतिकाय तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा करना, कराना, अनुमोदन करना। 10. अजीव-असंयम-अजीव होने पर भी जिन वस्तुओं के द्वारा असंयम होता है, उन बहुमूल्य वस्त्रपात्र आदि का ग्रहण करना अजीव-असंयम है / / 11. प्रेक्षा असंयम-जीव-सहित स्थान में उठना-बैठना आदि / 12. उत्प्रेक्षा-असंयम-गृहस्थों के पापकर्मों का अनुमोदन करना / 13. प्रमार्जन-असंयम-वस्त्र-पात्र आदि का प्रमार्जन न करना। 14. परिष्ठापनिका-असंयम-अविधि से परठना। 15. मन-असंयम-मन में दुर्भाव रखना। 16. वचन-असंयम-मिथ्या, कट, कठोर, पीड़ाकारी वचन बोलना / 17. काय-असंयम-गमनागमनादि कायिक क्रियाओं में असावधान रहना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003496
Book TitleAgam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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