SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण] महाव्रत-सूत्र--सर्वप्राणातिपात-विरमण-अहिंसा, सर्व-मृषावाद-विरमण-सत्य, सर्व-अदत्तादानविरमण-अस्तेय, सर्व-मैथुन-विरमण-ब्रह्मचर्य, सर्व-परिग्रह-विरमण-अपरिग्रह, इन पांचों महाव्रतों में कोई भी अतिचार-दोष लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ। ___ समिति-सूत्र--ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान-भाण्डमात्र-निक्षेपणासमिति, उच्चार-प्रश्रवण-श्लेष्म-जल्ल-सिंघाण-परिष्ठापनिका समिति, इन पांचों समितियों का सम्यक् पालन न करने से जो भी अतिचार लगा हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ। पडिक्कमामि छहिं जोबनिकाह-पुढविकाएणं, पाउकाएणं, तेउकाएणं, वाउकाएणं, वणस्सइकाएणं, तसकाएणं।। पडिक्कमामि छहि लेसाहि-किण्ह-लेसाए, नील-लेसाए, काउ-लेसाए, तेउ-लेसाए, पउमलेसाए, सुक्क-लेसाए। जीवनिकाय-सूत्र-पृथ्वीकाय, अपकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय, इन छहों जीव-निकायों की हिंसा करने से जो अतिचार लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ। लेश्या-सूत्र-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, और शुक्ललेश्या, इन छहों लेश्याओं के द्वारा अर्थात प्रथम तीन अधर्म लेश्याओं का आचरण करने से और अन्त की तीन धर्मलेश्यामों का आचरण न करने से जो भी अतिचार लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ। पडिक्कमामि सहि भयठाणेहि, अहिं मयट्ठाहिं, नहिं बंभचेरगुत्तीहिं, दसविहे समणधम्मेएक्कारसहि उवासगपाडिमाहि, बारसहिं भिक्खुपडिमाहि, तेरसहि किरियाठाहिं, चउद्दसहि भूयगामेहि, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहि, सोलसहिं गाहासोलसएहि, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारस विहे प्रबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहि, बोसाए असमाहिठाणेहि-- इक्कवीसाए सबलेहि, बावीसाए परीसहेहि, तेवीसाए सूयगज्झयह, चउवीसाए देवेहि, पणवीसाए भावणाहिं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003496
Book TitleAgam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy