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________________ प्रकाशकीय श्री जिनागम ग्रन्थमाला का २९वाँ ग्रन्थाङ्क प्रागमप्रेमी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। इसमें सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति दो प्रागमों का समावेश किया गया है। दोनों का एक साथ मुद्रण कराने का हेतु क्या है, इस विषय में आगम-अनुयोग-प्रवर्तक मुनि श्री कन्हैयालालजी म. 'कमल' ने अपने सम्पादकीय में विस्तृत चर्चा की है, अतएव यहाँ दोहराने की आवश्यकता नहीं है / प्रस्तुत दोनों आगम मूलपाठ एवं परिशिष्ट प्रादि के साथ ही प्रकाशित किये जा रहे हैं। अर्थ-विवेचन आदि नहीं दिये गये हैं / इसका कारण यह है कि इनमें पाए कतिपय पाठों और उनके अर्थ में मतैक्य नहीं हो सका है। इसके अतिरिक्त इनका विषय ज्योतिष है जो सर्वसाधारण के लिए दुरूह है। इस विषय की चर्चा भी सम्पादकीय में की गई है। पाठकों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि जीवाजीवाभिगमसूत्र भी विस्तृत व्याख्या के साथ शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है। वह दो भागों में प्रकाशित होगा। प्रथम भाग मुद्रित हो चुका है। द्वितीय भाग का मुद्रण चालू है / इसका अनुवाद एवं सम्पादन विद्वद्वर श्री राजेन्द्रमुनिजी ने किया है / जीवाजीवाभिगमसूत्र के मुद्रण के पश्चात् छेदसूत्रों का प्रकाशन ही शेष रहता है। आगममनीषी मुनिश्री 'कमल' जी म. के सम्पादन के साथ इनका प्रकाशन भी शीघ्र ही होने वाला है। इनके प्रकाशित होते ही पागम बत्तीसी के प्रकाशन का महान् अनुष्ठान पूर्णरूप से सम्पन्न हो जाएगा। प्रस्तुत प्रकाशन के अनेक प्रागम कलिजों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में निर्धारित किए गए हैं। प्रतएव यह आवश्यक समझा गया कि इनकी उपलब्धि निरन्तर बनी रहे। इस कारण जिन आगमों की प्रतियाँ समाप्त हो रही हैं, उनके द्वितीय संस्करण प्रकाशित कराये जा रहे हैं। तदनुसार प्राचारांगसूत्र प्रथम भाग दूसरी बार छप रहा है और उपासकदशांगसूत्र भी शीघ्र प्रेस में दिया जाने वाला है। इनके अतिरिक्त जिन-जिन भागमों के प्रथम संस्करण समाप्त होते जाएंगे, उन्हें भी दुसरी बार प्रकाशित किया जाएगा। सन्तोष का विषय है कि ग्रन्थमाला के इन प्रकाशनों का समाज एवं विद्वद्वर्ग ने पर्याप्त प्रादर किया है। आशा है भविष्य में इनका और अधिक प्रचार-प्रसार होगा और श्री पागम प्रकाशन समिति का प्रयास अधिक सफल और सुफलप्रदायक सिद्ध होगा। अन्त में प्रागम-अनुयोग के विशाल कार्य में व्यस्त होते हए भी मुनिश्री कन्हैयालालजी म. 'कमल' ने मूलपाठ का सम्पादन कर व डाक्टर श्री रुद्रदेवजी त्रिपाठी ने महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना लिखकर जो सहयोग प्रदान किया है, उसके लिए प्रादरपूर्वक प्राभार मानते हैं। साथ ही श्री पं. शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने अवलोकन किया एवं सहयोगी कार्यकर्ताओं से सहयोग प्राप्त हना है, तदर्थ उनके भी हम आभारी हैं। रतनचन्द मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष निवेदक अमरचन्द मोदी मन्त्री श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर सायरमल चौरडिया महामन्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003484
Book TitleAgam 16 17 Suryaprajnapti Chandraprajnapti Sutra - Swe Mu Pu Agam 16 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages300
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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