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________________ अठारहवाँ अध्ययन : सुसुमा ] [ 503 धन कनक तथा सुसुमा लड़की को लेकर चला गया है / अतएव हम, हे देवानुप्रियो ! सुसुमा लड़की को वापिस लाने के लिए जाना चाहते हैं / देवानुप्रियो ! जो धन कनक वापिस मिले वह सब तुम्हारा होगा और सुसुमा दारिका मेरी रहेगी।' चिलात का पीछा किया २७-तए णं ते णयरगुत्तिया धण्णस्स एयमझें पडिसुर्णेति, पडिसुणित्ता सन्नद्ध जाव गहियाउहपहरणा महया महया उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा रायगिहाओ निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव चिलाए चोरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चिलाएणं चोरसेणावइणा सद्धि संपलग्गा यावि होत्था। तब नगर के रक्षकों ने धन्य सार्थवाह की यह बात स्वीकार की / स्वीकार करके वे कवच धारण करके सन्नद्ध हुए। उन्होंने आयुध और प्रहरण लिए / फिर जोर-जोर के उत्कृष्ट सिंहनाद से समद्र की खलभलाट जैसा शब्द करते हुए राजगह से बाहर निकले / निकल कर जहाँ चिलात चोर था, वहाँ पहुँचे / पहुँच कर चिलात चोरसेनापति के साथ युद्ध करने लगे। २८-तए णं जगरगुत्तिया चिलायं चोरसेणावई हयमहिय जाव पडिसेहंति / तए णं ते पंच चोरसया णगरगोत्तिएहि हयमयि जाव पडिसेहिया समाणा तं विपुलं धणकणगं बिच्छड्डेमाणा य विष्पकिरेमाणा य सव्वओ समंता विप्पलाइस्था। तए णं ते णयरगुत्तिया तं विपुलं घणकणगं गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव रायगिहे तेणेव उवागच्छंति / तब नगररक्षकों ने चोरसेनापति चिलात को हत, मथित करके यावत् पराजित कर दिया। उस समय वे पांच सौ चोर नगररक्षकों द्वारा हत मथित होकर और पराजित होकर उस विपुल धन और कनक आदि को छोड़कर और फेंक कर चारों ओर- कोई किसी तरफ, कोई किसी तरफ भाग खड़े हुए। तत्पश्चात् नगररक्षकों ने वह विपुल धन कनक आदि ग्रहण कर लिया / ग्रहण करके वे जिस ओर राजगृह नगर था, उसी ओर चल पड़े / २९-तए णं से चिलाए तं चोरसेण्णं तेहिं नगरगुत्तिएहि हयमहिय जाव पवरवीरघाइयविवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि पडिसेहियं (पासित्ता ?) भीते तत्थे सुसुम दारियं गहाय एग महं अगामियं दीहमद्धं अडवि अणुपविठे। तए णं धणे सत्थवाहे सुसुमं दारियं चिलाएणं अडविहि अवहीरमाणि पासित्ता णं पंचर्चाह पुहि सद्धि अप्पछ? सन्नद्धबद्धवम्मियकवए चिलायस्स पदमग्गविहिं अभिगच्छइ, अणुगच्छमाणे अणुगज्जेमाणे हक्कारेमाणे पुक्कारेमाणे अभितज्जेमाणे अभितासेमाणे पिट्ठओ अणुगच्छइ / नगररक्षकों द्वारा चोरसैन्य को हत एवं मथित हुअा देख कर तथा उसके श्रेष्ठ वीर मारे गये, ध्वजा-पताका नष्ट हो गई, प्राण संकट में पड़ गए हैं, सैनिक इधर उधर भाग छूटे हैं, यह देख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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