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________________ सत्तरहवाँ अध्ययन : आकीर्ण सार : संक्षेप प्रस्तुत अध्ययन का नाम आकीर्णज्ञात है। आकीर्ण अर्थात् उत्तम जाति का अश्व / अश्वों के उदाहरण द्वारा यहाँ यह प्रतिपादन किया गया है कि जो साधक इन्द्रियों के वशवर्ती होकर, अनुकूल विषयों को प्राप्त करके उनमें लुब्ध बन जाते हैं, वे अपनी रागवृत्ति की उत्कटता के कारण दीर्घकाल तक भव-भ्रमण करते हैं। जन्म-जरा-मरण की वेदनाओं के अतिरिक्त भी उन्हें अनेक प्रकार की व्यथाएँ सहन करनी पड़ती हैं। इसके विपरीत, प्रलोभन-जनक विषयों में जो पासक्त नहीं होते, जो इन्द्रिय-विषयों से विमुख रहते हैं, वे अपने वीतरागभाव के कारण सांसारिक यातनाओं से बच जाते हैं। यही नहीं, वे सहज-स्वाभाविक असीम आत्मानन्द को प्राप्त कर लेते हैं / कथानक इस प्रकार है हस्तिशीर्ष नगर के कुछ नौकावणिक्-जलयान द्वारा समुद्र के रास्ते विदेश जाकर व्यापार करने वाले व्यापारी, व्यापार के लिए निकले / वे लवणसमुद्र में जा रहे थे कि अचानक तूफान आ गया। नौका आँधी के थपेड़ों से डगमगाने लगी / चलित-विचलित होने लगी। इधर-उधर चक्कर खाने लगी। निर्यामक की बुद्धि भी चक्कर खाने लगी। उसे दिशा का भान नहीं रहा-नौका किधर जा रही है, किस ओर जाना है, यह भी वह भूल गया। वणिकों के भी होश-हवास ठिकाने नहीं रहे / वे देवी-देवताओं की मनौती मनाने लगे। गनीमत रही कि तूफान थोड़ी देर में शान्त हो गया। निर्यामक की संज्ञा जागृत हुई / दिशा का बोध हो पाया। नौका कालिक द्वीप के किनारे जा लगी। ___ कालिक द्वीप में पहुँचने पर वणिकों ने देखा-यहाँ चाँदी, सोने, हीरों आदि रत्नों की प्रचुर खाने हैं। उन्होंने वहाँ उत्तम जाति के विविध वर्णों वाले अश्व भी देखे। मगर वणिकों को अश्वों से कोई प्रयोजन नहीं था, अतएव वे चाँदी, सोना, हीरा आदि भर कर वापिस अपने नगर में-हस्तिशीर्ष-लौट आए। तत्कालीन परम्परा के अनुसार वणिक बहुमूल्य उपहार लेकर राजा कनककेतु के समक्ष गए / राजा ने उनसे पूछा-देवानुप्रियो ! आप लोग अनेक नगरों में भ्रमण करते हैं, समुद्रयात्रा भी करते हैं तो इस बीच कुछ अद्भुत अनोखी वस्तु देखने में आई है ? वणिकों ने कालिक द्वीप के अश्वों का उल्लेख किया, उनकी सुन्दरता का वर्णन कह सुनाया / तब राजा ने वणिकों को अश्व ले पाने का आदेश दिया। वणिक् राजा के सेवकों के साथ पुनः कालिक द्वीप गए। किन्तु उन्होंने देखा था कि वहाँ के अश्व मनुष्य की गंध पाकर दूर भाग गए थे, वे सहज ही पकड़ में आने वाले नहीं थे। अतएव वे पाँचों इन्द्रियों को लुभाने वाली सामग्नी लेकर चले। कालिक द्वीप पहुँच कर उन्होंने वह सामग्नी बिखेर दी / जो घोड़े इन्द्रियों को वश में न रख सके, उस सामग्री के प्रलोभन में फंस गए, वे बन्धन में फंस गए-पकड़े गए और हस्तिशीर्ष नगर में ले पाए गए। वहाँ प्रशिक्षित होने में उन्हें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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