SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 6. गौतम ६3-अपने साथ बैल रखने वाले। बैल को इस प्रकार की शिक्षा देते जो विविध तरह की करामात दिखाकर जन-जन के मन को प्रसन्न करते / उससे प्राजोविका चलाने वाले। 7. गो-वती१६४.-.-"रघुवंश" में राजा दिलीप का वर्णन है कि जब गाय खाये तो खाना, पानी पिये तो पानी पीना, वह जब नींद ले तब नींद लेना और वह जब चले तब चलना / इस प्रकार व्रत रखने वाले। 8. गृहि-धर्मी-गृहस्थधर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानने वाला और सतत गृहस्थधर्म का चिन्तन करने वाला। 9. धर्मचिन्तक-सतत् धर्मशास्त्र का अध्ययन करने वाला। 10. अविरुद्ध १६५—किसी के प्रति विरोध न रखने वाला। अंगुत्तरनिकाय में भी अविरुद्धकों का उल्लेख है। प्रस्तुत मत के अनुयायी अन्य बाह्य क्रियाओं के स्थान पर मोक्ष, हेतु, विनय को प्रावश्यक 67 मानते हैं। वे देवगण, राजा, साधु, हाथी, घोड़े, गाय-भैसबकरी, गीदड़, कौमा, बगुले आदि को देखकर उन्हें भी प्रणाम करते थे / सूत्रकृतांग की टीका'६६ में विनयवादी के बत्तीस भेद किये हैं। आगम साहित्य में विनयवादी परिव्राजकों का अनेक स्थलों पर उल्लेख है। वैश्यायन जिसने गोशालक पर तेजोलेश्या का प्रयोग किया था२०० और मौर्यपुत्र तामली भी विनयवादी था। वह जीवनपर्यंत छठ-छठ तप करता था और सूर्याभिमुख होकर आतापना लेता था / काष्ठ का पात्र लेकर भिक्षा के लिए जाता और भिक्षा में केवल चावल ग्रहण करता था / वह जिसे भी देखता उसे प्रणाम करता था / पूरण तापसी भी विनयवादी ही था। बौद्ध साहित्य में पूरण कश्यप को महावीरकालीन छह धर्मनायकों में एक माना२०१ है। पर हमारी दृष्टि से वह पूर्ण काश्यप से पृथक होना चाहिये / क्योंकि बौद्ध साहित्य का पूर्ण कश्यप प्रक्रियावादी भी था और वह नग्न था और उसके अस्सी हजार अनुयायी थे / 202 11. विरुद्ध----परलोक और अन्य सभी मत-मतान्तरों का विरोध करनेवाला। प्रक्रियावादियों को 'विरुद्ध' कहा है, क्योंकि उनका मन्तव्य अन्य मतवादियों से विरुद्ध 203 था। इनके चौरासी भेद भी मिलते हैं 204 // 193. प्राचाराँगचूणि २-२-पृ. 346 194. गावी हि समं निग्गमपवेससयणासणाइ पक रेंति / भुजंति जहा गावी तिरिक्खवासं विहविन्ता / -पोपपातिक टीका पृ. 169 195. प्रोपपातिक 38, पृ. 169 196. अंगुत्तरनिकाय, 3, पृ. 176 197. सूत्रकृतांग 1-12-2 और उसकी टीका 198. उत्तराध्ययन टीका 18 पृ. 230 191. सूत्रकृतांग टीका 1-12- पृ. 209 (अ) 200. (क) प्रावश्यकनियुक्ति 494, (ख) आवश्यकचूणि पृ. 298 (ग) भगवती सूत्र शतक 14 तृतीय खण्ड, पृ. 373-74 201. व्याख्याप्रज्ञप्ति 3-1 202. वही. 3-2 203. दीघनिकाय-सामयफल सूत्र, 2 204. बौद्ध पर्व (मराठी) प्र. 10, पृ. 127 52 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy