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________________ सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी ] [ 437 तब पाण्डु राजा उन वासुदेव आदि राजाओं का प्रागमन जानकर हर्षित और संतुष्ट हुा / उसने स्नान किया बलिकर्म किया और द्रुपद राजा के समान उनके सामने जाकर सत्कार किया, यावत् उन्हें यथायोग्य प्रावास प्रदान किए। तब वे वासुदेव आदि हजारों राजा जहाँ अपने-अपने आवास थे, वहाँ गये और उसी प्रकार (पहले कहे अनुसार संगीत-नाटक आदि से मनोविनोद करते हुए) यावत् विचरने लगे। १३५–तए णं से पंडुराया हथिणाउरं नयरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं क्यासी—'तुब्भे णं देवाणुप्पिया! विउलं असणं पाणं खाइमं साइम' तहेव जाव उवणेति / तए गं वासुदेवपामोक्खा बहवे राया व्हाया कयबलिकम्मा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं तहेव जाव बिहरंति / तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने हस्तिनापुर नगर में प्रवेश किया। प्रवेश करके कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा–'हे देवानुप्रियो ! तुम विपुल अशन पान खादिम और स्वादिम तैयार कराग्यो।' उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार किया यावत् वे भोजन तैयार करवा कर ले गये / तब उन वासुदेव आदि बहुत-से राजाओं ने स्नान एवं बलिकार्य करके उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का आहार किया और उसी प्रकार (पहले कहे अनुसार) विचरने लगे। हस्तिनापुर में कल्याणकरण १३६-तए णं पंडुराया पंच पंडवे दोवई च देवि पट्टयं दुरूहेइ, दुरूहित्ता सेयापीरहि कलसेहि व्हावेंति, पहावित्ता कल्लाणकरं करेइ, करित्ता ते वासुदेवपामोक्खे बहवे रायसहस्से विपुलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पुष्फवस्थेणं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता जाव पडिविसज्जेइ / तए गं ते वासुदेवपामोक्खा जाव [बहवे रायसहस्सा पंडुएणं रण्णा विसज्जिया समाणा जेणेव साई साइं रज्जाई जेणेव साइं साई नयराइं तेणेव] पडिगया / / तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने पाँच पाण्डवों को तथा द्रौपदी को पाट पर बिठलाया / बिठला कर श्वेत और पीत कलशों से उनका अभिषेक किया-उन्हें नहलाया। फिर कल्याणकर उत्सव किया / उत्सव करके उन वासुदेव आदि बहुत हजार राजाओं का विपुल प्रशन, पान, खादि से तथा पुष्पों और वस्त्रों से सत्कार किया, सन्मान किया / सत्कार-सन्मान करके यावत् उन्हें विदा किया / तब वे वासुदेव वगैरह बहुत से राजा यावत् अपने-अपने राज्यों एवं नगरों को लौट गए। १३७-तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धि अंतो' अंतेउरपरियालसद्धि कल्लाल्लि वारंवारेणं ओरालाई भोगभोगाई जाव [भुजमाणा] विहरति / तत्पश्चात् पाँच पाण्डव द्रौपदी देवी के साथ अन्तःपुर के परिवार सहित एक-एक दिन वारी-वारी के अनुसार उदार कामभोग भोगते हुए यावत् रहने लगे। 1. अ. 1 सूत्र 107 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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