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________________ सोलहवां अध्ययन : दौपदी] [ 435 विवाह-विधि १२७-तए णं दुवए राया पंच पंडवे दोवइं रायवरकण्णं पट्टयं दुरूहेइ, दुहित्ता सेयापीहि कलसेहि मज्जावेइ, मज्जावित्ता अग्गिहोमं करावेइ, पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य पाणिग्गहणं करावेह। तत्पश्चात् द्रुपद्र राजा ने पांचों पाण्डवों को तथा राजवरकन्या द्रौपदी को पट्ट पर आसीन किया। आसीन करके श्वेत और पीत अर्थात् चांदी और सोने के कलशों से स्नान कराया। स्नान करवा कर अग्निहोम करवाया। फिर पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ पाणिग्रहण कराया। १२८–तए णं से दुवए राया दोवईए रायवरकण्णयाए इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ, तंजहा-अट्ठ हिरण्णकोडीओ जाव' अट्ठ पेसणकारीओ दासचेडीओ, अण्णं च विपुलं धणकणग जाव [रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-सन्त-सार-सावएज्जं अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं, पकामं भोत्तु, पकामं परिभाएउं] दलया। तए णं से दुवए राया ताई वासुदेवपामोक्खाई विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फवत्थगंध जाव [ मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता] पडिविसज्जइ / तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने राजवरकन्या द्रौपदी को इस प्रकार का प्रीतिदान (दहेज) दियाअाठ करोड़ हिरण्य आदि यावत् पाठ प्रेषणकारिणी (इधर-उधर जाने-माने का काम करने वाली) दास-चेटियां / इनके अतिरिक्त अन्य भी बहुत-सा धन-कनक यावत् [रजत, मणि, मोती, शंख, सिला, प्रवाल, लाल, उत्तम सारभूत द्रव्य जो सात पीढी तक प्रचुर मात्रा में देने, भोगने और विभाजित करने के लिए पर्याप्त था ] प्रदान किया। तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने उन वासुदेव प्रभृति राजाओं को विपुल अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम तथा पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और अलंकार आदि से सत्कार करके विदा किया। पाण्डुराजा द्वारा निमंत्रण १२९-तए णं से पंडू राया तेसि वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं करयल जाव एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! हथिणाउरे नयरे पंचण्हं पंडवाणं दोवइए य देवीए कल्लाणकरे भविस्सइ, तं तुब्भे गं देवाणुप्पिया ! ममं अणुगिहिमाणा अकालपरिहीणं समोसरह / तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने उन वासुदेव प्रभृति अनेक सहस्र राजाओं से हाथ जोड़कर यावत् इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो ! हस्तिनापुर नगर में पांच पाण्डवों और द्रौपदी का कल्याणकरण महोत्सव (मांगलिक क्रिया) होगा। अतएव देवानुप्रियो ! तुम सब मुझ पर अनुग्रह करके यथासमय विलंब किये विना पधारना। १३०-तए णं वासुदेवपामोक्खा पत्तेयं पत्तेयं जाव जेणेव हथिणाउरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। ....... . --- ..... -- -- - 1. अ. 1 सूत्र 105 Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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