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________________ सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी ] [429 - १११-तए णं ते वासुदेवपामोक्खा जेणेव सया सया आवासा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिखंहिंतो पच्चोरहंति, पच्चोरुहित्ता पत्तेयं पत्तेयं खंधावारनिवेसं करेंति, करित्ता सए सए आवासे अणुपविसंति, अणुपविसित्ता सएसु सएसु आवासेसु आसणेसु य सयणेसु य सन्निसन्ना य संतुयट्ठा य बहूहि गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगिज्जमाणा य उवणच्चिज्जमाणा य विहरंति। तत्पश्चात् वे वासुदेव प्रभृति नृपति अपने-अपने प्रावासों में पहुँचे / पहुँचकर हाथियों के स्कंध से नीचे उतरे / उतर कर सबने अपने-अपने पड़ाव डाले और अपने-अपने प्रावासों में प्रविष्ट हुए / आवासों में प्रवेश करके अपने-अपने आवासों में आसनों पर बैठे और शय्याओं पर सोये / बहुत-से गंधवों से गाने कराने लगे और नट नाटक करने लगे। ११२-तए णं से दुवए राया कंपिल्लपुर नगरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता, विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उबक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता, कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी'गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुच पसण्णं च सुबहुपुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं च वासुदेवपामोक्खाणं रायसहस्साणं आवासेसु साहरह।' ते वि साहरति / तत्पश्चात् अर्थात् सब आगन्तुक अतिथि राजाओं को यथास्थान ठहरा कर द्रुपद राजा ने काम्पिल्यपुर नगर में प्रवेश किया। प्रवेश करके विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन तैयार करवाया। फिर कौटु म्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा---'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और वह विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम,'सुरा, मद्य, मांस, सीधु और प्रसन्ना तथा प्रचुर पुष्प, वस्त्र, गंध, मालाएँ एवं अलंकार वासुदेव आदि हजारों राजाओं के प्रावासों में ले जायो।' यह सुनकर वे, सब वस्तुएँ ले गये। ११३–तए णं वासुदेवपामुक्खा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव पसन्नं च आसाएमाणा आसाएमाणा विहरंति, जिभियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता जाव सुहासणवरगया बहूहि गंधव्वेहि जाव विहरति / तब वासुदेव आदि राजा उस विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम यावत् प्रसन्ना का पुनः पुनः प्रास्वादन करते हुए विचरने लगे / भोजन करने के पश्चात् आचमन करके यावत् सुखद प्रासनों पर आसीन होकर बहुत-से गंधों से संगीत कराते हुए विचरने लगे। सुरा, मद्य, सीधु और प्रसन्ना, यह मदिरा की ही जातियाँ हैं / स्वयंवर में सभी प्रकार के राजा और उनके सैनिक प्रादि प्राये थे। द्रपद राजा ने उन सबका उनकी आवश्यक वस्तुओं से सत्कार किया। इससे यह नहीं हए कि कृष्णजी स्वयं मदिरा आदि का सेवन करते थे। यह वर्णन सामान्य रूप से है। कृष्णजी सभी प्रागत राजारों में प्रधान थे, अतएव उनका नामोल्लेख विशेष रूप से हुआ प्रतीत होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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