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________________ [ ज्ञाताधर्मकथा 364 ] तए णं सा अम्मधाई तह त्ति पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता अंतेउरस्स अवदारणं निग्गच्छा, निम्गच्छित्ता जेणेव तेलिपुत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव' एवं क्यासी'एवं खलु देवाणुप्पिया ! पउमावई देवी सद्दावेइ / ' उस समय पद्मावती देवी ने अपनी धायमाता को बुलाया और कहा---'माँ, तुम तेतलिपुत्र के घर जाओ और तेतलिपुत्र को गुप्त रूप से बुला लायो / ' तब धायमाता ने 'बहुत अच्छा' इस प्रकार कहकर पद्मावती का आदेश स्वीकार किया। स्वीकार करके वह अन्तःपुर के पिछले द्वार से निकल कर तेतलिपुत्र के घर पहुँची। वहाँ पहुँच कर दोनों हाथ जोड़ कर (मस्तक पर अंजलि करके) उसने यावत् इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिय ! आप को पद्मावती देवी ने बुलाया है।' २०-तए णं तेयलिपुत्ते अम्मधाईए अंतियं एयमझें सोच्चा णिसम्म हट्ठ-तुळे अम्मधाईए सद्धि साओ गिहाओ निग्गच्छड, निग्गच्छित्ता अंतेउरस्स अवहारेण रहस्सियं चेव अणपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव एवं वयासी-'संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! जंमए कायव्वं / ' तत्पश्चात् तेतलिपुत्र धायमाता से यह अर्थ सुनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट-तुष्ट होकर धायमाता के साथ अपने घर से निकला / निकल कर अन्तःपुर के पिछले द्वार से, गुप्त रूप से उसने प्रवेश किया। प्रवेश करके जहाँ पद्मावती देवी थी, वहाँ अाया / पाकर दोनों हाथ जोड़ कर [मस्तक पर अंजलि करके] बोला-'देवानुप्रिये ! मुझे जो करना है, उसके लिए आज्ञा दीजिए।' २१–तए णं पउमावई देवी तेयलिपुत्तं एवं वयासी—'एवं खलु कणगरहे राया जाव' वियंगेइ, अहं च णं देवाणुप्पिया ! दारगं पयाया, तं तुमं णं देवाणुप्पिया! तं दारगं गिण्हाहि जाव' तव मम य भिक्खाभायणे भविस्सइ, ति कटु तेयलिपुत्तस्स हत्थे दलयइ। तए ण तेयलिपुत्ते पउमावईए हत्थाओ दारगं गेण्हइ, गेण्हित्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ, पिहित्ता अंतेउरस्स रहस्सियं अवदारेणं निम्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सए गिहे, जेणेव पोट्टिला भारिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोट्टिलं एवं वयासी ___ तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने तेतलिपुत्र से इस प्रकार कहा–'तुम्हें विदित ही है कि कनकरथ राजा यावत् [जन्मे हुए बालकों में से किसी के हाथ, किसी के कान आदि कटवाकर] सब पुत्रों को विकलांग कर देता है। 'हे देवानप्रिय ! मैंने बालक का प्रसव किया है। अत: तम इस बालक को ग्रहण करो-संभालो। यावत् यह बालक तुम्हारे लिए और मेरे लिए भिक्षा का भाजन सिद्ध होगा। ऐसा कहकर उसने वह बालक तेतलिपुत्र के हाथों में सौंप दिया। तत्पश्चात् तेतलिपुत्र ने पद्मावती के हाथ से उस बालक को ग्रहण किया और अपने उत्तरीय वस्त्र से ढंक लिया / ढंक कर गुप्त रूप से अन्तःपुर के पिछले द्वार से बाहर निकल गया / निकल कर जहाँ अपना घर था और जहाँ पोट्टिला भार्या थी, वहाँ पाया / आकर पोट्टिला से इस प्रकार कहा१-अ. 14 सूत्र 8. २-अ. 14 सूत्र 15. ३-प्र. 14 सूत्र 17. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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