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________________ आठवां अध्ययन : मल्ली] [ 277 तत्पश्चात् मल्ली अरहंत ने स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया। तब शक देवेन्द्र देवराज ने मल्ली के केशों को ग्रहण किया / ग्रहण करके उन केशों को क्षीरोदकसमुद्र (क्षीरसागर) में प्रक्षेप कर दिया। __तत्पश्चात् मल्ली अरिहन्त ने 'नमोऽत्थु णं सिद्धाणं' अर्थात 'सिद्धों को नमस्कार हो' इस प्रकार कह कर सामायिक चारित्र अंगीकार किया। १८२-जं समयं च णं मल्लो अरहा चरित्तं पडिवज्जइ, तं समयं च देवाणं मणुस्साण य णिग्धोसे तुरिय-णिणाय-गीत-वाइयनिग्घोसे य सक्कस्स वयणसंदेसेणं णिलुक्के यावि होत्था। जं समयं च णं मल्ली अरहा सामाइयं चरित्तं पडिबन्ने तं समयं च णं मल्लिस्स अरहओ माणसधम्माओ उत्तरिए मणपज्जवनाणे समुप्पन्ने।। जिस समय अरहंत मल्ली ने चारित्र अंगीकार किया, उस समय देवों और मनुष्यों के निर्घोष (शब्द-कोलाहल), वाद्यों की ध्वनि और गाने-बजाने का शब्द शकेन्द्र के आदेश से बिल्लू बन्द हो गया। अर्थात शकेन्द्र ने सब को शान्त रहने का आदेश दिया, अतएव चारित्रग्रहण करते समय पूर्ण नीरवता व्याप्त हो गई। जिस समय मल्ली अरहन्त ने सामायिक चारित्र अंगीकार किया, उसी समय मल्ली अरहंत को मनुष्यधर्म से ऊपर का अर्थात् साधारण अव्रती मनुष्यों को न होने वाला-लोकोत्तर अथवा मनुष्यक्षेत्र संबंधी उत्तम मन:पर्ययज्ञान (मनुष्य क्षेत्र-अढ़ाई द्वीप में स्थित संज्ञी जीवों के मन के पर्यायों को साक्षात् जानने वाला ज्ञान) उत्पन्न हो गया / १८३--मल्लो णं अरहा जे से हेमंताणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे पोससुद्धे, तस्स णं पोससुद्धस्स एक्कारसीपक्खे णं पुव्वण्हकालसमयंसि अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं, अस्सिणीहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं तिहि इत्थीसएहि अभितरियाए परिसाए, तिहिं पुरिससएहि बाहिरियाए परिसाए सद्धि मुडे भवित्ता पव्वइए। मल्ली अरहन्त ने हेमन्त ऋतु के दूसरे मास में, चौथे पखवाड़े में अर्थात् पौष मास के शुद्ध (शुक्ल) पक्ष में और पौष मास के शुद्ध पक्ष की एकादशी के पक्ष में अर्थात् अर्द्ध भाग में (रात्रि का भाग छोड़कर दिन में), पूर्वाह्न काल के समय में, निर्जल अष्टम भक्त तप करके, अश्विनी नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग प्राप्त होने पर, तीन सौ ग्राभ्यन्तर परिषद् की स्त्रियों के साथ और तीन सौ बाह्य परिषद् के पुरुषों के साथ मुडित होकर दीक्षा अंगीकार की। १८४-मल्लि अरहं इमे अट्ट णायकुमारा अणुपब्वइंसु, तं जहा शंदे य णंदिमित्ते, सुमित्त बलमित्त भाणुमित्ते य। . अमरवइ अमरसेणे महसेणे चेव अट्ठमए / मल्ली अरहंत का अनुसरण करके इक्ष्वाकुवंश में जन्मे तथा राज्य भोगने योग्य हुए आठ ज्ञातकुमार दीक्षित हुए / उनके नाम इस प्रकार हैं (1) नन्द (2) नन्दिमित्र (3) सुमित्र (4) बलमित्र (5) भानुमित्र (6) अमरपति (7) अमरसेन (8) आठवें महासेन। इन आठ ज्ञातकुमारों (इक्ष्वाकुवंशी राजकुमारों) ने दीक्षा अंगीकार की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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