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________________ 268 ] [ ज्ञाताधर्मकथा राज्य में और अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य पर प्रतिष्ठित करो। प्रतिष्ठित करके हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिविकाओं पर आरूढ होयो / प्रारूढ होकर मेरे समीप आयो / ' १४९-तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा मल्लिस्स अरहओ एयमढें पडिसुर्णेति / तत्पश्चात् उन जितशत्रु प्रभृति राजाओं ने मल्ली अरिहंत के इस अर्थ (कथन) को अंगीकार किया। १५०-तए णं मल्ली अरहा ते जितसत्तुपामोक्खे गहाय जेणेव कुभए राया तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता कुंभगस्स पाएसु पाडेइ / तए णं कुभए राया ते जियसत्तुपामोक्खे विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुष्फ-वत्थ-गंधमल्ललंकारेणं सक्कारेइ, सम्माणेइ सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ। तत्पश्चात् मल्ली अरिहंत उन जितशत्रु वगैरह को साथ लेकर जहाँ कुम्भ राजा था. वहाँ आई / आकर उन्हें कुम्भ राजा के चरणों में नमस्कार कराया। तब कुम्भ राजा ने उन जितशत्रु वगैरह का विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम से तथा पुष्प, वस्त्र, गंध, माल्य और अलंकारों से सत्कार किया, सन्मान किया। सत्कार-सन्मान करके उन्हें विदा किया। १५१–तए णं जियसत्तुपामोक्खा कुभएणं रण्णा विसज्जिया समाणा जेणेव साइं साई रज्जाई, जेणेव नयराइं, तेणेव उवागच्छति / उवागच्छित्ता सयाई सयाई रज्जाई उवसंपज्जित्ता विहरंति / तत्पश्चात् कुम्भ राजा द्वारा विदा किये हुए जितशत्रु आदि राजा जहाँ अपने-अपने राज्य थे, जहाँ अपने-अपने नगर थे, वहाँ आये / प्राकर अपने-अपने राज्यों का उपभोग करते हुए विचरने लगे। १५२-तए णं मल्ली अरहा 'संवच्छरावसाणे निक्खमिस्सामि' त्ति मणं पहारेइ / तत्पश्चात् परिहन्त मल्ली ने अपने मन में ऐसी धारणा की कि 'एक वर्ष के अन्त में मैं दीक्षा ग्रहण करूगी।' 153 तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्कस्स आसणं चलइ। तए णं सक्के देविदे देवराया आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहि पउंजइ, पउंजित्ता मल्लि अरहं ओहिणा आभोएइ, आभोइत्ता इमेयारूवे अज्झस्थिए जाव [चितिए पत्थिए मणोगते संकप्पे] समुप्पज्जित्था-'एवं खलु जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहिलाए रायहाणीए कुभगस्स रण्णो (धूआ) मल्ली अरहा निक्खमिस्सामि त्ति मणं पहारेइ / ' उस काल और उस समय में शक्रेन्द्र का आसन चलायमान हुआ / तब देवेन्द्र देवराज शक ने अपना पासन चलायमान हुआ देखा / देख कर अवधिज्ञान का प्रयोग किया-उपयोग लगाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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