SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 250 ] [ ज्ञाताधर्मकथा थी, प्राप्त थी और बार-बार उपयोग में आ चुकी थी कि वह जिस किसी द्विपद (मनुष्यादि), चतुष्पद (गाय, अश्व आदि) और अपद (वृक्ष, भवन आदि) का एक अवयव भी देख ले तो उस अवयव के अनुसार उसका पूरा चित्र बना सकता था। ९८--तए णं से चित्तगरदारए मल्लीए जवणियंतरियाए जालंतरेण पायंगुढ़े पासइ / तए णं तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपजित्था सेयं खलु ममं मल्लीए वि पायंगुट्ठाणुसारेणं सरिसगं जाव गुणोववेयं रूवं निस्वत्तित्तए, एवं संपेहेइ, संपेहिता भूमिभागं सज्जेइ, सज्जित्ता मल्लीए वि पायंगुट्ठाणुसारेणं जाव निश्चत्तेइ / उस समय एक बार उस लब्धि-सम्पन्न चित्रकारदारक ने यवनिका-पर्दे की प्रोट में रही हुई मल्ली कुमारी के पैर का अंगूठा जाली (छिद्र) में से देखा, तत्पश्चात् उस चित्रकारदारक को ऐसा विचार उत्पन्न हुआ, यावत् मल्ली कुमारी के पैर के अंगूठे के अनुसार उसका हूबहू यावत् गुणयुक्त-सुन्दर पूरा चित्र बनाना चाहिए / उसने ऐसा विचार किया। विचार करके भूमि के हिस्से को ठीक किया / ठीक करके मल्ली के पैर के अंगूठे का अनुसरण करके यावत् उसका पूर्ण चित्र बना दिया। ९९--तए णं सा चित्तगरसेणी चित्तसभं हाव-भाव-विलास-विव्वोय-कलिएहि, स्वेहि चित्तेइ, चित्तित्ता जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणति / तए णं मल्लदिन्ने चित्तगरसेणि, सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलेइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ / तत्पश्चात् चित्रकारों की उस मण्डली (जाति) ने चित्रसभा को यावत् हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से चित्रित किया / चित्रित करके जहाँ मल्लदिन्न कुमार था, वहाँ गई। जाकर यावत् कुमार की प्राज्ञा वापिस लौटाई-आज्ञानुसार कार्य हो जाने की सूचना दी। तत्पश्चात् मल्लदिन्न कुमार ने चित्रकारों की मण्डली का सत्कार किया, सन्मान किया, सत्कार-सन्मान करके जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया। दे करके विदा कर दिया / १००-तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अन्नया व्हाए अंतेउरपरियालसंपरिबुडे अम्मधाईए सद्धि जेणेव चित्तसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चित्तसभं अणुपविसइ / अणुपविसित्ता हाव-भावविलास-बिब्बोय-कलियाई रुवाइं पासमाणे पासमाणे जेणेव मल्लीए विदेहवररायकन्नाए तयाणुरूवे रूबे निव्वत्तिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं से मल्लदिन्ने कुमार मल्लीए विदेहवररायकन्नाए तयाणुरुवं रूवं निव्वत्तियं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था---'एस गं मल्ली विदेहवररायकन्न' ति कट्ट लज्जिए वीडिए विअडे सणियं सणियं पच्चोसक्कइ। तत्पश्चात् किसी समय मल्लदिन कुमार स्नान करके, वस्त्राभूषण धारण करके अन्तःपुर एवं परिवार सहित, धायमाता को साथ लेकर, जहाँ चित्रसभा थी, वहाँ अाया। आकर चित्रसभा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy