SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 244 ] [ ज्ञाताधर्मकथा रूप, यौवन में पीर लावण्य में उत्कृष्ट थी और उत्कृष्ट शरीर वाली थी। उस सुबाहु बालिका का किसी समय चातुर्मासिक स्नान (जलक्रोडा) का उत्सव पाया। 80 - तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहुए दारियाए चाउम्मासियमज्जणयं उठ्ठिय जाणइ, जाणित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी—'एवं खलु देवाणुप्पिया ! सुबाहूए दारियाए कल्लं चाउम्मासियमज्जणए भविस्सइ, तं कल्लं तुब्भे णं रायमग्गमोगादसि चउक्कंसि (पुष्फमंडवंसि) जलथलयदसद्धवण्णमल्लं साहरेह, जाव [एगं महं सिरिदामगंडं गंधर्वाण मुयंत उल्लोयंसि ओलएह / तेवि तहेव] ओलइंति / ____ तब कुणालाधिपति रुक्मिराजा ने सुबाहु बालिका के चातुर्मासिक स्नान का उत्सव पाया जाना / जानकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा—'हे देवानुप्रिय ! कल सुबाहु बालिका के चातुर्मासिक स्नान का उत्सव होगा। अतएव तुम राजमार्ग के मध्य में, चौक में (पुष्प-मण्डप में) जल और थल में उत्पन्न होने वाले पाँच वर्गों के फल लामो और एक सुगंध छोड़ने वाला श्रीदामकाण्ड (सुशोभित मालाओं का समूह) छत में लटकायो / ' यह आज्ञा सुनकर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार कार्य किया / ८१--तए णं रुप्पी कुणालाहिवई सुबन्नगारसेणि सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी--'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! रायमग्गमोगाढंसि पुष्फमंडवंसि णाणाविहपंचवहिं तंदुलेहि णगरं आलिहह / तस्स बहुमज्झदेसभाए पट्टयं रएह / ' रइत्ता जाब पच्चप्पिणंति / तत्पश्चात् कुणाल देश के अधिपति रुक्मिराजा ने सुवर्णकारों की श्रेणी को बुलाया। उसे बुलाकर कहा-'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही राजमार्ग के मध्य में. पुष्पमंडप में विविध प्रकार के पंचरंगे चावलों से नगर का आलेखन करो नगर का चित्रण करो। उसके ठीक मध्य भाग में एक पाट (बाजौठ) रखो / ' यह सुनकर उन्होंने इसी प्रकार कार्य करके प्राज्ञा वापस लौटाई। 82- तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई हस्थिखंधवरगए चाउरंगिणीए सेणाए महया भडचडकर-रह-पहकरविंद-परिक्खित्ते अंतेउरपरियालसंपरिवुडे सुबाहुं दारियं पुरओ कटु जेणेव रायमग्गे, जेणेव पुप्फमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पुप्फमंडवं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सन्निसन्ने। तत्पश्चात् कुणालाधिपति रुक्मि हाथी के श्रेष्ठ स्कन्ध पर आरूढ हुआ। चतुरंगी सेना, बड़ेबड़े योद्धानों और अंत:पुर के परिवार प्रादि से परिवृत होकर सुबाहु कुमारी को आगे करके, जहाँ राजमार्ग था और जहाँ पुष्पमंडप था, वहाँ पाया। आकर हाथी के स्कन्ध से नीचे उतरा। उतर कर पुष्पमंडप में प्रवेश किया। प्रवेश करके पूर्व दिशा की ओर मुख करके उत्तम सिंहासन पर आसीन हुआ। 83 तओ णं ताओ अंतेउरियाओ सुबाहुं दारियं पट्टयंसि दुरूहेंति / दुरूहित्ता सेयपीयरहि कलसेहि पहाणेति, हाणित्ता सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करित्ता पिउणो पायं वंदिउं उवणेति / तए णं सुबाहू दारिया जेणेव रुप्पी राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy