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________________ पाठवां अध्ययन : मल्ली ] [ 235 तत्पश्चात् कई सौ योजन लवण-समुद्र में पहुँचे हुए उन ग्रहन्नक प्रादि सांयात्रिक नौकावणिकों को बहुत से सेकड़ों उत्पात प्रादुर्भूत होने लगे। वे उत्पात इस प्रकार थे / ६१–अकाले गज्जिए, अकाले विज्जुए, अकाले थणियसद्दे, अभिक्खणं आगासे देवताओ णच्चंति, एगं च णं महं पिसायरूवं पासंति / अकाल में गर्जना होने लगी, अकाल में बिजली चमकने लगी, अकाल में मेघों की गंभीर गड़गड़ाहट होने लगी। वार-बार अाकाश में देवता (मेघ) नृत्य करने लगे। इसके अतिरिक्त एक ताड जैसे पिशाच का रूप दिखाई दिया। ६२--तालजंघं दिवं गयाहि बाहाहि मसिमूसगहिसकालगं, भरिय-मेहवन्न, लंबोठें, निम्गयम्गदंतं. निल्लालियजमलजयलजीह, आऊसिय-वयणगंडदेसं, चीणचिपिटनासियं, विगयभग्गभग्गभुमयं, खज्जोयग-दित्तचक्खुरागं, उत्तासणगं, विसालवच्छ, विसालकुच्छि, पलंबकुच्छि, पहसियपलियपयडियगतं, पणच्चमाणं, अष्फोडतं, अभिवयंतं, अभिगज्जंतं, बहुसो बहुसो अट्टहासे विणिम्मुयंतं नोलुप्पलगवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि गहाय अभिमुहमावयमाणं पासंति / वह पिशाच ताड़ के समान लंबी जांघों वाला था और उसकी बाहुएँ आकाश तक पहुँची हुई थी / वह कज्जल, काले चूहे और भैंसे के समान काला था। उसका वर्ण जलभरे मेघ के समान था। उसके होठ लम्बे थे और दांतों के अग्रभाग मुख से बाहर निकले थे। उसने अपनी एक-सी दो जीभ मुह से बाहर निकाल रक्खी थीं / उसके गाल मुह में धंसे हुए थे। उसकी नाक छोटी और चपटी थी / भकुटि डरावनी और अत्यन्त वक्र थी। नेत्रों का वर्ण जुगनू के समान चमकता हुआ लाल था / देखने वाले को घोर त्रास पहुंचाने वाला था। उसकी छाती चौड़ी थी, कुक्षि विशाल और लम्बी थी / हँसते और चलते समय उसके अवयव ढीले दिखाई देते थे / वह नाच रहा था, आकाश को मानो फोड़ रहा था, सामने आ रहा था, गर्जना कर रहा था और बहुत-बहुत ठहाके मार रहा था / ऐसे काले कमल, भैंस के सींग, नील, अलसी के फूल के समान काली तथा छुरे को धार की तरह तीक्ष्ण तलवार लेकर पाते हुए पिशाच को उन वणिकों ने देखा। ६३–तए णं ते अरहण्णगवज्जा संजत्ताणावावाणियगा एगं च णं महं तालपिसायं पासंतितालजंघ, दिवं गयाहि बाहाहि, फुट्टसिरं भमर-णिगर-वरमासरासिमहिसकालगं, भरियमेहवणं, मुप्पणहं, फालसरिसजोह, लंबोळं धवल-बट्ट-असिलिट्ठ-तिक्ख-थिर-पोण-कुडिल-दाढोवगूढवयणं, विकोसिय-धारासिजुयल-समसरिस-तणुयचंचल-गलंतरसलोल-चवल-फुरुफुरंत-निल्लालियग्गजोहं अवयत्थिय-महल्ल-विगय-वीभच्छ-लालपगलंत-रत्ततालुय हिंगुलुय-सगब्भकंदरबिलं व अंजणगिरिस्स, अग्गिजालुग्गिलंतवयणं आऊसिय-अक्खचम्म-उइट्ठगंडदेसं चीण-चिविड-क-भग्गणासं, रोसागय-धमधमेन्त-मारुय-निठुर-खर-फरुसझुसिरं, ओभुग्गणासियपुडं घाडुब्भड-रइय-भोसणमुह, उद्धमुहकन्नसक्कुलिय-महंत-विगय-लोम-संखालग-लंबंत-चलियकन्न, पिंगलदिप्पंतलोयणं, भिउडितडियनिडालं नरसिरमाल-परिणचिद्धं, विचित्तगोणससुबद्धपरिकर अवहोलंत-पुप्फुयायंत सप्पविच्छुय-गोधु दर-नउलसरड-विरइयविचित्तवेयच्छमालियागं, भोगकर-कण्हसप्पधमधमेतलंबंतकन्नपूर, मज्जार-सियाललइयखंध, दित्तघुघुयंतधूयकयकुतलासरं, घंटारवेण भीम, भयंकर, कायरजणहिययफोडणं, दित्तमट्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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