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________________ 228] [ ज्ञाताधर्मकथा 'निश्चय ही पद्मावती देवी के यहाँ कल नागपूजा होगी। अतएव हे देवानुप्रियो ! तुम जल और स्थल में उत्पन्न हुए पांचों रंगों के ताजा फूल नागगृह में ले जानो और एक श्रीदामकाण्ड (शोभित मालाओं का समूह) बना कर लायो / तत्पश्चात् जल और स्थल में उत्पन्न होने वाले पांच वर्षों के फूलों से विविध प्रकार की रचना करके उसे सजायो / उस रचना में हंस, मृग, मयूर, क्रौंच, सारस, चक्रवाक, मदनशाल (मैना) और कोकिलों के समूह से युक्त तथा ईहामृग, वृषभ, तुरग आदि की रचना वाले चित्र बनाकर महामूल्यवान्, महान् जनों के योग्य और विस्तार वाला एक पुष्पमंडप बनायो / उस पुष्पमंडप के मध्य भाग में एक महान् और गंध के समूह को छोड़ने वाला श्रीदामकाण्ड उल्लोच (छत) पर लटकायो / लटकाकर पद्मावती देवी की राह देखते-देखते ठहरो।' तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष इसी प्रकार कार्य करके यावत् पद्मावती की राह देखते हुए नागगृह में ठहरते हैं। ४२-तए णं सा पउमावई देवी कल्लं' कोड बियपूरिसे सहावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-- खिप्पामेव भो देवाणुपिया ! सागेयं नगरं सब्भितरबाहिरियं आसित्त-सम्मज्जियोवलित्तं जाव' पच्चप्पिणंति। तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने दूसरे दिन प्रातःकाल सूर्योदय होने पर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही साकेत नगर में भीतर और बाहर पानी सीचो, सफाई करो और लिपाई करो। यावत् (सुगंधित करो, सुगंध की गोली जैसा बना दो।) वे कौटुम्बिक पुरुष उसी प्रकार कार्य करके आज्ञा वपिस लौटाते हैं। ४३--तए णं सा पउमावई देवी दोच्चं पि कोड बियपुरिसे सहावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी'खिप्पामेव देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्तं जाव' जुत्तामेव उवट्ठवेह / ' तए णं ते वि तहेव उवट्ठति / तए णं सा पउमावई अंतो अंतेउरंसि व्हाया जाव धम्मियं जाणं दुरूढा / तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने दूसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही लघुकरण से युक्त (द्रुतगामी अश्व बाले) यावत् रथ को जोड़कर उपस्थित करो।' तब वे भी उसी प्रकार रथ उपस्थित करते हैं। तत्पश्चात् पद्मावती देवी अन्तःपुर के अन्दर स्नान करके यावत् [बलिकर्म, कौतुक, मंगल], प्रायश्चित्त करके धार्मिक (धर्मकार्य के लिए काम में आने वाले) यान पर अर्थात् रथ पर आरूढ हुई / ४४–तए णं सा पउमावई नियगपरिवालसंपरिवडा सागेयं नगरं मझमज्झेणं णिज्जइ, णिज्जित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता पुक्खरिणि ओगाहेइ / ओगाहित्ता जलमज्जणं जाव [करेइ, करित्ता जलकोडं करेइ, करेत्ता पहाया कयबलिकम्मा] परम-सुइभूया उल्लपडसाडया जाई तत्थ उप्पलाइं जाव [पउमाई कुमुयाई गलिणाई सुभगाई सोगंधियाइं पोंडरीयाई महापोंडरीयाई सयपत्ताई सहस्सपत्ताई ताई] गेण्हइ / गेण्हित्ता जेणेव नागघरए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। 1. प्र.अ.१४ २.प्र.अ.७७ 3. उपासकदशा 1 4. प्र. अ.८० Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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