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________________ सप्तम अध्ययन : रोहिणीज्ञात ] [ 201 'तुब्भे णं देवाणुप्पिया! एए पंच सालिअक्खए गेण्हह, गेण्हित्ता पढमपाउसंसि महावुट्ठिकार्यसि निवइयोस समासि खुड्डाग केयारं सुपरिकम्मियं करेह / करित्ता इमे पंच सालिअवखए वावेह / वावेत्ता दोच्चं पि तच्चपि उक्खयनिक्खए करेह, करेत्ता वाडिपक्खेवं करेह, करित्ता सारक्खेमाणा संगोवेमाणा अणु पुग्वेणं संवड्ढेह / ' तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने उन्हीं मित्रों आदि के समक्ष चौथी पुत्रवधू रोहिणी को बुलाया। बुलाकर उसे भी वैसा ही कहकर पांच दाने दिये / यावत् उसने सोचा-'इस प्रकार पांच दाने देने में कोई कारण होना चाहिए / अतएव मेरे लिए उचित है कि इन पांच चावल के दानों का संरक्षण करूं, संगोपन करूं और इनकी वृद्धि करू / ' उसने ऐसा विचार किया। विचार करके अपने कुलगृह (मैके-पीहर) के पुरुषों को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा 'देवानुप्रियो ! तुम इन पांच शालि-अक्षतों को ग्रहण करो। ग्रहण करके पहली वर्षा ऋतु में अर्थात वर्षा के प्रारम्भ में जब खब वर्षा हो तब एक छोटी-सी क्यारी को अच्छी साफ करके ये पांच दाने बो देना / बोकर दो-तीन बार उत्क्षेप-निक्षेप करना अर्थात् एक जगह से उखाड़ कर दूसरी जगह रोपना / फिर क्यारी के चारों ओर बाड़ लगाना / इनकी रक्षा और संगोपना करते हुए अनुक्रम से इन्हें बढ़ाना / १०-तए णं ते कोडुबिया रोहिणीए एयमढें पडिसुणेति, पडिसुणित्ता ते पंच सालिअक्खए गेण्हंति, गेण्हित्ता अणुपुट्वेणं संरक्खंति, संगोवंति विहरंति / तए णं ते कोडुबिया पढमपाउसंसि महावुद्विकासि णिवइयंसि समाणंसि खुड्डाय केयारं सुपरिकम्मियं करेंति, करित्ता ते पंच सालिअक्खए ववंति, ववित्ता दोच्चं पि तच्चं पि उक्खयनिक्खए करेंति, करिता वाडिपरिक्खेवं करेंति, करित्ता अणुपुव्वेणं सारक्खेमाणा संगोवेमाणा संवड्ढेमाणा विहरति / तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने रोहिणी के आदेश को स्वीकार किया। स्वीकार करके उन चावल के पांच दानों को ग्रहण किया। ग्रहण करके अनुक्रम से उनका संरक्षण, संगोपन करते हुए रहने लगे। तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने वर्षाऋतु के प्रारम्भ में महावृष्टि पड़ने पर छोटी-सी क्यारी साफ की। पांच चावल के दाने बोये / बोकर दूसरी और तीसरी बार उनका उत्क्षेप-निक्षेप किया, करके बाड़ का परिक्षेप किया-बाड़ लगाई। फिर अनुक्रम से संरक्षण, संगोपन और संवर्धन करते हुए विचरने लगे। ११-तए णं ते सालिअक्खए अणुषुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविज्जमाणा संवट्टिज्जमाणा साली जाया, किण्हा किण्होभासा जाव' निउरंबभूया पासादीया दंसणीया अभिरूवा पडिरूवा। तए णं ते साली पत्तिया वत्तिया (तइया) गब्भिया पसूया आगयगंधा खीराइया बद्धफला पक्का परियागया सल्लइया पत्तइया हरियपत्वकंडा जाया यादि होत्था। 1. द्वि. अ.५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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