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________________ पञ्चम अध्ययन : शैलक ] [ 177 वे तीन प्रकार के हैं। वे इस प्रकार--(१) साथ जन्मे हुए (2) साथ बढ़े हुए और (3) साथ-साथ धूल में खेले हुए / यह तीन प्रकार के मित्र-सरिसवया श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं / जो धान्य-सरिसवया (सरसों) हैं, वे दो प्रकार के हैं। वे इस प्रकार-शस्त्रपरिणत और प्रशस्त्रपरिणत / उनमें जो प्रशस्त्रपरिणत हैं / अर्थात जिनको अचित्त करने के लिए अग्नि आदि शस्त्रों का प्रयोग नहीं किया गया है, अतएव जो अचित्त नहीं हैं, वे श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। जो शस्त्रपरिणत हैं, वे दो प्रकार के हैं। वे इस प्रकार-प्रासुक और अप्रासुक / हे शुक! अप्रासुक भक्ष्य नहीं हैं। उनमें जो प्रासुक हैं, वे दो प्रकार के हैं। वे इस प्रकार-याचित (याचना किये हुए) और अयाचित (नहीं याचना किये हुए) / उनमें जो अयाचित हैं, वे अभक्ष्य हैं। उनमें जो याचित हैं, वे दो प्रकार के हैं.। यथा—एषणीय और अनेषणीय / उनमें जो अनेषणीय हैं, वे अभक्ष्य हैं / जो एषणीय हैं, वे दो प्रकार के हैं --लब्ध (प्राप्त) और अलब्ध (अप्राप्त)। उनमें जो अलब्ध हैं, वे अभक्ष्य हैं / जो लब्ध हैं वे निर्ग्रन्थों के लिए भक्ष्य हैं। 'हे शुक ! इस अभिप्राय से कहा है कि सरिसवया भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी है / ' ४८-एवं कुलत्था विभाणियव्वा / नवरि इमं नाणत्तं ---इत्थिकुलत्था य धनकुलत्था य। इत्थिकुलत्था तिविहा पन्नत्ता, तंजहा कुलवधुया य, कुलमाउया य, कुलधूया य / धन्नकुलत्था तहेव / इसी प्रकार 'कुलत्था' भी कहना चाहिए, अर्थात् जैसे 'सरिसवया' के सम्बन्ध में प्रश्न और उत्तर ऊपर कहे हैं, वैसे ही 'कुलत्था' के विषय में कहने चाहिए। विशेषता इस प्रकार है-कुलत्था के दो भेद हैं -स्त्री-कुलत्था (कुल में स्थित महिला) और धान्य-कुलत्था अर्थात् कुलथ नामक धान्य / स्त्री-कुलत्था तीन प्रकार को हैं / वह इस प्रकार-कुलवधू, कुलमाता और कुलपुत्री / ये अभक्ष्य हैं। धान्यकुलत्था भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं इत्यादि सरिसवया के समान समझना चाहिए। ४९—एवं मासा वि / नवरि इमं नाणत्तं--मासा तिविहा पण्णता, तंजहा--कालमासा य, अस्थमासा य, धनमासा य / तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुबालसविहा पण्णता, तं जहा सावणे जाव (भद्दवए आसोए कत्तिए मग्गसिरे पोसे माहे फग्गुणे चेत्ते वइसाहे जेट्ठामूले) आसाढे, ते णं अभक्खेया। अत्थमासा दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-हिरनमासा य सुवण्णमासा य / ते णं अभक्खेया। धन्नमासा तहेव। मास सम्बन्धी प्रश्नोत्तर भी इसी प्रकार जानना चाहिए / विशेषता इस प्रकार है---मास तीन प्रकार के कहे गये हैं / वे इस प्रकार हैं--कालमास, अर्थमास और धान्यमास / इनमें से कालमास बारह प्रकार के कहे हैं। वे इस प्रकार हैं-श्रावण यावत् [भाद्रपद, आसौज, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, जेष्ठामूल ग्राषाढ, अर्थात श्रावणमास से आषाढमास तक। वे सब अभक्ष्य हैं / अर्थमास अर्थात् अर्थरूप माशा दो प्रकार के कहे हैं--चाँदी का माशा और सोने का माशा। वे भी अभक्ष्य हैं / धान्यमास अर्थात उड़द भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं; इत्यादि 'सरिसवया' के समान कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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